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________________ [११६] १० श्री महावीर भगवान का पंचकल्याणक दोहा शाशन नायक शिवकरण, वंदु वीर जिणंद । पंचकल्याणक तेहनां, गाशुधरी आणंद ॥१॥ सुणतां थुणतां प्रभु तणा, गुण गिरुवा एक तान । ऋद्धि वृद्धि सुख संपदा, सफल होय अवतार ॥२॥ ढाल पहली ( राग-बापड़ी सुण जीभ लड़ी-ए देशी ) सांभलजो ससनेही सयणा, प्रभुजी ना चरित्र उल्लासरे। जो सांभलसे प्रभु गुण तेहनां, समकित निर्मल थाशे रे ॥ सा० ॥१॥ जंबुद्वीपे दक्षिण भरते, माहाणकुड ग्रामे रे । रिखबदत्त ब्राहाण तसनारी, देवानंदा नामे रे ॥ सा० ॥ २ ॥ आषाढ सुदि छठे प्रभुजी, पुष्पोत्तरथी चवियारे । उतरा फाल्गुनी जोगे आवी, तस कूखे अवतरियो रे ॥ सा० ॥ ३ ॥ तेणी रयणी सा देवानंदा, सुपन गजादिक निरखे रे। परभाते सुणी कंत रिखबदत्त, हैडा मांही हरखे रे ॥ सा० ॥ ४ ॥ भाखे भोग अर्थ सुख होशे, होशे पुत्र सुजाण रे। ते निसुणी सा देवानंदा, कीधु वचन प्रमाण रे ॥ सा० ॥ ५ ॥ भोग भला भोगवती विचरे, एहवे अचरिज होवेरे । कार्तिक जीव सुरेश्वर हरखे,
SR No.032213
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Sazzay Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShiv Tilak Manohar Gunmala
PublisherShiv Tilak Manohar Gunmala
Publication Year1964
Total Pages208
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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