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________________ [६] हरो दुःखने । श्री निर्वाणी कहो श्रीजिनरवीराजके, प्रथम नाथ श्रीशिवसाथ छे । पुष्करवर हो चोवीशी प्रणके, त्रण जातनो नाथ छे ॥ ४ ॥ श्रीपुरुरवा हो अव बोध विवेकके, विक्रमेंद्र जिनवर नमो । श्री सुशांति हो हरदेव मुणींदके, नंदीकेश मुज गम्यो । महामृगेन्द्र हो श्री अशोचित्तके, धर्मेन्द्रनाथ नाथाय नमो । धातकी खंडे हो ऐरवत क्षेत्रके, त्रण चोवीशी चरणे नमु॥ ५ ॥ श्री अश्ववृन्द हो कुटीलक वंदीके, वर्धमान मुज मन रम्यो । श्री नंदीकेश हो श्री धर्मचन्द्रके, विवेक मुज मनमां गम्यो । कलापक हो श्री विशोमनाथके, अरण्यनाथ कीर्ति घणी । पुष्करद्विपे हो चोवीशी त्रणके, त्रीश चोवीशी ते भणी ॥ ६ ॥ दोहा नेमी जिनेश्वर उपदिश्यो, सदह्यो कृणु नरेश । वीर विमल गुरूथी लह्यो, में सुण्यो उपदेश ॥ १ ॥ काल अनंतो निर्गम्यो, अनंत अनंतीवार । आदि निगोदे हुँ भन्यो, केणे नवि कीधी सार ॥२॥ प्रभु दर्शन मुज नवि हुओ, नवी सुण्यो धर्म उपदेश। नाटकिया नाटक परे, बहुल बनाव्या वेष ।। ३ ।। अनुक्रमे नरभव लयो, उत्तम कुल अवतार । दुर्लभ दरिषण पामीने, तार प्रभु-मुज तार ॥ ४ ॥
SR No.032213
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Sazzay Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShiv Tilak Manohar Gunmala
PublisherShiv Tilak Manohar Gunmala
Publication Year1964
Total Pages208
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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