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________________ [१६] दोहा जिन प्रतिमा जिनवाणीनो, मोटो जग श्रोधार.।' जीव अनंता जेहथी, पाम्या भवनो पार ॥ नाम गोत्र श्रवणे सुणी, जपे जे जिनवर नाम । आठ कर्म अरि जीतीने, पामे शिवपुर ठाम ॥ ढाल तीसरी श्री प्रलंबहो चारित्रनिधि देवके, प्रशमराजीत जिन वंदीए । श्री स्वामी कहो विपरीत प्रासादके, वंदी पाप निकंदीए ॥ श्री अघटीत हो ब्रह्मणेंद्र जिनराजके, ऋषभचन्द्र चित्त आणीए । पश्चिममा हो भरत मौझार के, त्रण चोवीसी जाणीए ॥ १ ॥ श्री दयांत हो अभिनंदन पूज्यके, रत्नेश नाथ त्रिभुवन धणी। श्याम कोष्टजहो जरुदेव दयाल के, अति पार्श्व कीर्ति घणी ॥ नंदीपेण हो व्रतधर निर्वाणके, संवंता संकट टले । जम्बुद्वीपे हो चउवीसी त्रणके, सेवंता संपत्ति मले ॥ २ ॥ श्री सौंदर्य हो त्रिविक्रमनाथके, नरसिंह सेवो सही । श्री खेमंत हो संतोषित देवके, कामनाथ वन्दो वही ॥ मुनीनाथ हो जिनवर चन्द्रदाहके, दिलादित्य चितमां धरो । खंड घातकी हो पूर्व ऐरावत मांहीके, त्रण चोवीशी मंगल करो ।। ३ ।। अष्टाहिक हो श्रीवणीकनाथ के, उदयज्ञान सेवो सुखने । तमोकंद हो श्री सायकाक्षदेवके, क्षेमंत वांदी
SR No.032213
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Sazzay Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShiv Tilak Manohar Gunmala
PublisherShiv Tilak Manohar Gunmala
Publication Year1964
Total Pages208
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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