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________________ [ ५ ] उपधान में चारित्र भावना सं. १९७६ में रतलाम में परमोपकारी आगमोद्धारक आचार्य देवेश श्री सागरानंद सूरिश्वरजी म. सा. की अध्यक्षता में बड़े उत्साह पूर्वक उपधान तप किया और माल पहनी, टोली, नवकारसी, पूजा, प्रभावना का अच्छा लाभ लिया आचार्य देवेश कि वैराग्य भरी देशना सुनकर दीक्षा लेने का अभिग्रह धारण किया । तीर्थ यात्रा और संघ भावना श्री १००८ श्री सिद्धाजलजी कि पंचतीर्थी, केशरीयाजी कि यात्रा तीन बार कि, समेत शिखर, पावापुरी, जेसलमेर, गोडवाड़ पंच तीर्थी आनन्द पूर्वक करके दिल को संतोषित किया इसके बाद करेड़ा पार्श्वनाथ तीर्थ में एक देहरी लेकर श्री आदिनाथ भगवान की मूर्ति स्थापन कि इसके पीछे एक दिन वीस स्थानक का रास बांचते बांचते संघ भावना हुई, उसी समय श्रभिग्रह लिया कि मांडवगढ़ का छरी पालता चतुविध संघ निकालना । देवगुरु के पसाय से यह मनोरथ थोड़े ही समय में पूर्ण हुए। श्री १००८ आमोद्धारक के पट्टधर परम पूज्य पन्यास विजयसागरजी म. सा., उपाध्याय परम पूज्य क्षमासागरजी म. सा. आदि ठाणा और साध्वी हेमश्रीजी म. प्रबोधश्रीजी म. आदि ठाणा इन्दौर पधारे । प्राचीन मांडवगढ़ तीर्थ की यात्रा का
SR No.032213
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Sazzay Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShiv Tilak Manohar Gunmala
PublisherShiv Tilak Manohar Gunmala
Publication Year1964
Total Pages208
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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