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________________ [ = १ ] एणि तिथीए जिनजी तणा, सुण प्राणीजीरे । कल्याणक पंच सार भवनो पार, भवि प्राणीजीरे ॥ ५॥ +++ ढाल दूसरी 1 जगपति जिन चोवीशमोरे लाल । ए भाख्यो अधिकार रे भविकजन || श्रेणिक आदे सहु मल्यारे लाल । शक्ति त अनुसार रे भविकजन || भाव धरीने सांभलोरे, आराधो वरी खंतरे भविकजन || भाव० ९ ॥ दोय वरस दोय मासनीरे लाल, श्राराधो धरी हेतरे भविकजन । उजमणु विधिशु करोरे लाल, बीज ते मुक्ती संकेतरे भविकजन ||भाव० २ || मार्ग मिथ्या दूरे तजोरे लाल । श्रराधो गुणना थोकरे भविकजन || भाव० ३ || वोरनी वाणी सांभलीरे लाल । उळरंग थया बहु लोकरे || भविकजन भाव० ४ ॥ एणी बीजे के तर्यारे लाल । वली तरसे के करसे संगरे भविकजन || भाव० ५ ॥ शशी सिद्धि अनुमानथीर लाल । शैल नागधर अंक भवि जन || भाव० ६ ।। अषाढ़ शुदि दशमी दिनेरे लाल । ए गायो स्तवन रसाल रे भविकजन || भाव० ७ || नवलविजय सुपसायधीरे लाल । चतुरने मंगल मालरे भविकजन || भाव० ८ ॥ कलश इम वीर जिनवर सयल सुखकर, गायो अति उलट भरे । अपाड़ उजवल दशमी दिवसे, संवत ढार अठठोत्तरे ||
SR No.032213
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Sazzay Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShiv Tilak Manohar Gunmala
PublisherShiv Tilak Manohar Gunmala
Publication Year1964
Total Pages208
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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