SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 111
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [८०] शशि प्रगटे जिम ते दिने, धन्य ते दिन सुविहाण । एक मने अाराधता, पामे पद निर्वाण ॥५॥ ढाल पहली कल्याणक जिनना कहुं, सुण प्राणीजीरे । अभिनंदन अरिहंत, ए भगवंत भवि प्राणीजीरे ॥ माघ सुदी बीजने दिने, सुण प्राणीजीरे । पाम्या शिव सुख सार, हरख अपार भवि प्राणीजीरे ॥१॥ वासुपूज्य जिन बारमा, सुण प्राणीजीरे । एहज तिथे थयु नाण, सफल विहाण भवि प्राणीजीरे ।। अष्ट कर्म चूरण करी, सुण प्राणीजीरे । अवगाहन एकवार, मुक्ति मोझार भवि प्राणीजीरे ॥२॥ अरनाथ जिनजी नमु, सुण प्राणीजीरे । अष्टादशमां अरिहंत, ए भगवंत भवि प्राणीजीरे ॥ उजवल तिथी फागणनी भली, सुण प्राणी जीरे । वरीया शिव बधु सार, सुन्दर नार भवि प्राणीजीरे ॥३॥ दशमा शीतल जिनेवरु, सुण प्राणीजीरे । परम पदनी ए वेल गुणनी गेल, भवि प्राणीजीरे ।। वैशाख वदी बीजने दिने, सुण प्राणीजीरे । मुक्यो सरवे ए साथ सुरनर नाथ, भवि प्राणीजीरे ॥४॥ श्रावण सुदीनी बीज भली, सुण प्राणीजीरे । सुमतिनाथ जिनदेव सारे सेव, भवि प्राणीजीरे ॥
SR No.032213
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Sazzay Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShiv Tilak Manohar Gunmala
PublisherShiv Tilak Manohar Gunmala
Publication Year1964
Total Pages208
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy