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________________ माहरो तू करे ते तो सगलो खोटोरे। काया से हँस अदा साथे फूटो लोटोरे ॥ धर्म० ॥२॥ डाभ अणी जल विन्दुवो ते तो ततखिण जाषेरे । जिम काया सु जीवड़ो जावत,वार न लागेरे ॥ धर्म० ॥ ३॥ एक ारे बिहुँ उपना भरत बाहू दोऊ भाई रे। राज करण बिहुँ अभिया संसार ऐसी सगाई रे॥ धर्म० ४॥ इण भव बेटा बेटडी धरणी ने धर कन्तोरे । परभव कोई न चालसी इम बोले भगवंतारे ॥ धर्म० ॥५॥ एक चाल्यो बीजो चालसी तीजो चालन हारोरे । चेत सको तो चेत जो पीछे करसी पुकारोरे ॥ धर्म० ॥ ६॥ धंधो कर धन जोडियो कौडी काम न आवेरे । पुण्य करोरे प्रापियां ते तो सुरपद पावरे ॥ धर्म० ॥ ७॥ श्रेणिक सुत पेरी थयो कोपिक नामें एहवोरे । मार दिवाड़ें दिन प्रतें राज तणा बसि हुयारै ॥ धर्म० ॥ ८॥ साधु तणी सेवा करो समरो श्री नवकारोएँ । शक्ति साथे दान दयो जो उतरो भव पारोरे ॥ धर्म ॥ ६ ॥ मन में ध्यान रूड़ो धरो निन्दा सगली टालोरे। रात्रि भोजन थे परिहरो समकित सुधी पालोरे ॥ १० ॥ धर्म क्षमा दया मनमें धरो कर्म हुवे जेह ढीलोरे । रङ्ग सुरि इम वीनवें ते पामें शिव लाभोरे ॥ धर्म० ॥ ११॥ इति सज्झाय ॥ ॥ सम्मेद शिखर स्तवन ॥ चलो चलो शिखर पर प्राज भवि जिन बंदिये ॥ च०॥ अजितादिक प्रभु बीसें जिनेसर पूजा रचाई हूँ मैं आज
SR No.032212
Book TitlePrachin Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRampal Yati
PublisherUmravsinh Dungariya
Publication Year1933
Total Pages36
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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