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________________ (५) कर जोडी उभो रहुँ, रात दिवस तुम ध्यानोरे । जो मनमां आणो नहि, तो शुं कहिले छानोरे ॥२॥ खोट खजाने को नहि, दीजीये वांछित दानोरे । करुणा नजर प्रभुजी तणी, वाधे सेवक वानोरे ॥३॥ काल लब्धि मुज मति घणो, भाव लब्धि तुम हाथेरे । लडथडतुं पण गज बच्चु, गाजे गयवर सारे ॥४॥ देशो तो तुमही भला, बीजा तो नवि याचुरे । वाचक जश कहे सांइशुं, फळशे से मुज साचुरे ॥५॥ थोय : संभव सुखदाता, जेह जगमां विख्याता । षट् जीवना त्राता, आपता सुखज्ञाता | माता ने भ्राता, केवलज्ञान ज्ञाता, दुःख दोहग व्राता, जास नामे पलाता ॥१॥ ४. श्री अभिनंदनस्वामीनी स्तुति : संसार सागर विषे भमता जनोने । छे आपनु शरण भेक ज तारवाने । अर्पी सुबोध भवथी अमने उगारो । चोथा जिनेश विनति उरमां उतारो। चैत्यवंदन : नंदन संवर रायनो, चोथा अभिनंदन । कपि लंछन वंदन करो, भव दुःख निकंदन ॥ १ ॥
SR No.032202
Book TitleChovish Jina Prachin Stuti Chaityavandan Stavan Thoyadi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Vidyarthi Kalyan Kendra
Publication Year
Total Pages58
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size6 MB
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