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________________ [ ६६ ] जीयां रे चन्दा प्रभुजो की मूरति मोहनगारो, रे जयकारी महाराज चन्दा प्रभुजी की मूरती मोहनगारी रे ॥ जीया रे चन्द्रवदन प्रभु मुख की शोभा सारी रे ॥ जयकारी जीया रे समास भरिया नेत्र युगल की जोड़ो रे॥ जयकारी० जीया रे प्रभु पद लीनो, कामिनि को संग छोड़ी रे॥ जयकारी० जीया रे अब मैं प्रभुजी से अर्ज करू कर जोड़ी रे॥ जयकारी. जीया रे चचल चितडुकिण बिध राखू झाली रे ॥ जयकारी० जीया रे फिर फिर बधि पाप कर्म की क्यारी रे ॥ जयकारी. जीया रे नेक नजर करी नाथ निहारो धारी रे॥ जयकारी० जीया रे तुम चरणों की सेवा द्य मुझ प्यारी रे ॥ जयकारी० जीया रे जिम मुझ मन अंतर घट में आवे रे ॥ जयकारी० जीया रे आनन्द मंगल वीर विजय गुण गावे रे ॥ जयकारी० (६) सुविधि नाथ प्रभु का स्तवन (१) में कीनो नहीं तुम बिन ओरशुं राग ।। में कीनो० ॥ दिन दिन वान वधे गुण तेरो, ज्यु कंचन परभाग, और न में है कषायकी कालीमा, सो क्युं सेवा लाग ॥ में कोनो ॥१॥ राजहंस तु मान-सरोवर, और अशुचो रुची काग; विषय भुजगम गरुडतु कहीए; और विषय विषनाग ।। में कीनो ॥ २॥
SR No.032198
Book TitlePrachin Stavan Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivya Darshan Prakashan
PublisherDivya Darshan Prakashan
Publication Year
Total Pages166
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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