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________________ [ ६४ ] प्रभुजी पंच तणी परशंसा के; रुडी मोहन महेर करीने दरिशन, मुजने थापजो रे लो; आपजो रे लो ||३|| हवे मुने तारजो रे लो तेहने वारजो रे लो ||४|| तारक तुम पालव में झाल्यी के; कुतरी कुमति थई छे केडे के, सुन्दरी सुमति सोहागण सारी के; प्यारी छे घणी रे लो; तातजी ते विण जीवे चउद, भुवन कयुँ आंगणु रे लो ॥५॥ लखगुण लखमणा राणीना जाया के, मुजमन आवजो रे लो; अनुपम अनुभव अमृतं मीठो के, सुखडी लावजो रे लो || ६ || दीपती दोढसो धनुष प्रमाण के, प्रभुजीनी देहडी रे लो; देवनी दश पूरव लख मान के; आयुष्य वेलंडी रे लो ॥७॥ निर्गुण निरागी पण हुं रागी के मनमांहे रहयो रे लो; शुभगुरु सुमति विजय सुपसाय के रामे सुख लह्यो रे लो ॥८॥ ( ३ ) चन्दा प्रभुजी से ध्यान रे, मोरी लागी लगनवा लागी लगनवा छोडी न छुटे; जब लग घट में प्राण र े || मो० ॥ १ ॥ क्रोध मान माया लोभ छोड के; भजले श्री भगवान रे || मो० ॥२॥ दानशील तव भावना भावो; जैन धरम प्रतिपाल रे || मो० ॥३॥ ||मो० ||४|| हाथ जोड़ कर विनती करत है; वन्दत सेठ खुसाल र
SR No.032198
Book TitlePrachin Stavan Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivya Darshan Prakashan
PublisherDivya Darshan Prakashan
Publication Year
Total Pages166
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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