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________________ [ ४७ ] मांगे आंख, कोई मांगे चरणनी सेवा, दादाने दरबार, हां हां दादा ने दरबार, दादा आदीश्वरजी० ॥५॥ पगपालो मांगे कंचन काया, आंधलो मांगे आंख, हुं मांगु चरणनी सेवा, दादाने दरबार, हां हां दादा ने दरबार; दादा आदीश्वरजी० ॥६॥ हीरविजय गुरु हीरलो ने, वीरविजय गुण गाय, शत्रुजयना दर्शन करतां, आनंद अपार, हां हां आनंद अपार, दादा आदीश्वरजी, दूरथी आव्यो दादा दरिशन दीयो ॥७॥ बालुडो निःस्नेही थइ गयो रे, छोडयुं विनीता- राज; (२) . संयम रमणी आराधवा, लेवा मुक्तिनुं राज (२) मेरे दिल वसी गयो वाल हो ॥१॥ माताने मेल्यां अकलां रे, जाय दिन नवि राति (२) रत्न सिंहासन बेसवा, चाले अडवाणे पाय (२) मेरे० ॥२॥ वहालानुं नाम नवि विसरे रे, झरे आंसुडानी धार, (२) आंखलडी छाया वली, गया वरस हजार, (२) मेरे ॥३॥ केवल रत्न आपी करी रे, पूरी मातानी आश, (२) । समवसरण लीला जोइने, साध्या आतम काज; (२) मेरे० ॥४॥ भकित वत्सल भगवंत ने रे, नामे निर्मल काय; (२) आदि जिणंद आराधतां, महिमा शिवसुख थाय (२) मेरे ॥५॥
SR No.032198
Book TitlePrachin Stavan Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivya Darshan Prakashan
PublisherDivya Darshan Prakashan
Publication Year
Total Pages166
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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