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________________ ( ४६ ) (६ ) जगजीवन जगवाल हो, मरुदेवी नो नंद लाल रे मुख दीठे सुख उपजे, दरिशन अति ही आनंद लाल रे ॥१॥ आंखडी अंबुज पांखडी, अष्टमी शशी सम भाव लाल रे वदन शरद चंदलो, वाणी अति ही रसाल लाल रे ॥२॥ लक्षण अंगे विराजता, अडहिय सहस उदार लाल रे रेखाकर चरणा दिठे, अभ्यंतर नहि पार लाल रे ॥३।। ईन्द्र चंद्र रवि गिरि तणा, गुण लही घडीयुं अंग लाल रे भाग्य किंहा थकी आवीयुं, अचरिज अह उत्तंग लाल रे ॥४।। गुण सघला अंगी कर्या, दूर कर्या सविदोष लाल रे वाचक यश विजये थुण्यो देजो सुखनो पोष लाल रे ॥५॥ ( १० ) दादा आदीश्वरजी, दूरथी आव्यो, दादा दरिशन दीयो; कोई आवे हाथी घोड़े, कोई आवे चडे पलाणे; कोई आवे पगपाले, दादा ने दरबार; हां हां दादा ने दरबार; दादा आदीश्वरजी दूरथी आव्यो, दादा दरिशन दीयो ॥१॥ शेठ आवे हाथी घोड़े, राजा आवे चडे पलाणे; हुँ आवं पगपाले, दादा ने दरबार, हां हां दादा ने दरबार, दादा आदीश्वरजी० ॥२॥ कोई मूके सोना रुपा, कोई मूके महोर, कोई मृके चपटी चोखा, दादाने दरबार हां हां दादा ने दरबार; दादा आदीश्वरजी० ॥३॥ शेठ मूके सोना रुपा, राजा मूके महोर हुँ मूकुं चपटी चोखा, दादाने दरबार, हां हां दादाने दरबार, दादा आदीश्वरजी० ॥४॥ कोई मांगे कंचनकाया, कोई
SR No.032198
Book TitlePrachin Stavan Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivya Darshan Prakashan
PublisherDivya Darshan Prakashan
Publication Year
Total Pages166
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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