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________________ व्यक्ति पर भिक्षुक अत्यधिक प्रसन्न हो जायगा तथा बड़े ही प्रेम से मांग देकर उसकी सेवा भक्ति करेगा। उसी प्रकार यदि हम द्रव्य भकि की भावना को पूर्ण विकसित कर दें तभी हमने भक्ति रूपी दूती को .. प्रसन्न कर ही तथा यह दूती मुक्ति को अवश्य आकर्षित करेगी। ऐसी द्रव्य भक्ति से ही धन का मोह कम हो जायगा। धन की अपेक्षा प्रभु को अधिक प्रिय बनाना है। अतः अधिक प्रेम से सुन्दर द्रव्यव्यय कर भक्ति करने का मन में भाव हो जायगा। जैसे-जैसे धन का अत्यधिक भोग दे करके हम प्रभु भक्ति करते जॉय वैसे ही मन धन से हटकर प्रभु भक्ति में लीन होता जायगा । अन्त में एक समय ऐसा आयगा कि मन में परमात्मा आत्मसार हो जायगा । आत्मा रूपी वर मुक्ति रूपी वधू को वरण कर लेगी। ___ द्रव्य भक्ति की तरह भाव भक्ति से हो वीतराग प्रभु के साथ आत्मसात होना है, प्रभु को दिले में आत्मसात करना है। प्रभु का गणगान तो अमूल्य वस्तु है। इसमें संगीतमय भक्ति तो एक अपूर्व वस्तु है । यह संगीतमय भक्ति प्राचीन भावपूर्ण स्तवन, स्तुति आदि से तो और ही सुन्दर विकसित हो उठता है। यह अनुभव-सिद्ध है कि मन्दिर में सामान्य भाव से गये हो, लेकिन अर्थ का लक्ष रख कर पद्धति पूर्वक एकाग्रचित से प्राचीनतम स्तवन का श्रवण एवं गान करने से प्रभु भक्ति के भाव में वृद्धि होती है। इससे संवेग-वैराग्य तथा वीतरागता में प्रेम का रंग जमता है तथा हम मुक्ति के समक्ष अग्रसर होते हैं। इसी प्रकार भाव भक्ति भी मुक्ति के दूती का अद्भुत कार्य करती है। प्रार्थना गीत, भक्तिगीत संसार के सभी धर्मो में भरे परे हैं, परन्तु नमुत्युणम् ( सक्रस्तव ) कल्याण मन्दिर और प्राचीन स्तवनों में जो प्रभु का गुण गान भक्ति प्रार्थना लोकोत्तर है। इन प्रत्येक गाथाओं के भावों की क्रमबद्ध संकलनायाद करने से, चिंतन करने से ध्यान की शक्ति में
SR No.032198
Book TitlePrachin Stavan Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivya Darshan Prakashan
PublisherDivya Darshan Prakashan
Publication Year
Total Pages166
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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