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________________ इस दूती को प्रसन्न कर दिया तभी मेरा शुभ समाचार मुक्ति सुन्दरी के पास मानों पहुँच गया तथा अनादि अंत काल से रूठी हुई मुक्ति कुमारी आने सम्मुख हो जायगी। यदि इ स दूती रूप परमात्म भक्ति को हम प्रसन्न करें अर्थात् उसको पूर्ण विकसित - र दें और वह अपने में आत्मसात हो जाय तभी मुक्ति कुमारी शीघ्र वरण करेगी। इसका कारण स्पष्ट है । द्रव्य भक्ति-पूजा, भावभक्ति तया प्रभु के गुणगान में वृद्धि करना ही परमात्म भक्ति को खूब विकसित करना है । द्रव्यभक्ति में अपना मूल्यवान द्रव्य तथा केशर, चंदन, कपूर, वादला, टीका रेशम धूप, दीप, घी इत्यादि का बड़ी प्रसन्नता से अर्पण व्यवहार करें। उपरोक्त वस्तुओं को कुपात्र, सामान्य पात्र में तथा सामान्य विशेष सुपात्र में भी नहीं, परन्तु परमात्म स्वरूप परम पात्र में अर्पित करें। तभी इस द्रव्य का सर्वोत्तम विनियोग हुआ। कहा जाए अतएव मुक्ति सुन्दरी को वरण करने के लिये भक्ति रूपी दूती को प्रसन्न करना आवश्यक है। क्योंकि : "भक्ति विना नर सोहहि कैसे । लवण विना वहु व्यंजन जैसे ॥" यह तभी हो सकता है जब हमें परमाततत्व से अन्य वस्तु मूल्यवान न लगे। यह बात तो सत्य है कि अधम योनियों में भटकते हुए हम भिखारी ने परमात्मा के प्रभाव से ही इस पूर्ण उच्च भव. को पाया है। ऐसे प्रभु को अनुकम्पा पर तो हम सर्वस्व न्योछावर कर दें ताकि उनके ऊपर असाधारण अनुराग हो जाय तथा उनकी सेवा भक्ति में तन्मयता प्राप्त हो जाय । यदि किसी भिक्षुक को करोड़ाधिपति बना दिया जाय तो उस
SR No.032198
Book TitlePrachin Stavan Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivya Darshan Prakashan
PublisherDivya Darshan Prakashan
Publication Year
Total Pages166
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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