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________________ ( २६ ) पांचशे धनुषनी देहडी, प्रभुजी परम दयाल । लाख चोराशी पुर्व- जस आयु विशाल ॥२॥ वृषभ लंछन जिन वृषधरूमे, उत्तम गुण मणिखाण तसपद पद्म सेवन थकी, लही अविचल ठाण ॥३॥ (२) श्री अजित जिन चैत्यवंदन अजितनाथ प्रभु अवतों, विनितानो स्वामी, जिलशत्रु विजया तणो, नंदन शिवगामी ।।१।। बोहोंतेर लाख पूरव तणुं, पाल्यु जेणे आय; गज लंछन लांछन नहि, प्रणमे सुरराय ॥२॥ साडा चारसें धनुषनीओ, जिनवर उत्तम देह; पादपद्मतस प्रणमिय, जेम लहीए शिवगेह ॥३॥ (३) श्री संभवनाथ जिन चैत्यवंदन सावत्थी नयरी धणी श्री संभवनाथ, जितारी नृय नंदनो चलवे शिव साथ ॥२॥ सेना नंदन, चंदने पूजोनव अंगे, चारसें धनुषy देहमान प्रणमो मनरंगे॥२॥ साठ लाख पुरव तणु ए जिनवर उत्तम आय, तुरंग लंछन पद पद्मने नमता शिवसुख थाय ॥३॥ (४) श्री अभिनंदन जिन चैत्यवंदन उचपणे त्रणसो पचास, धनुष प्रभु देह संवरराय सिद्धारथ सुतशु मुन नेह ॥१॥ लाख पचास पूर्व आयु, अयोध्यानो राणो सुवर्ण वर्ण विराजतो, कपि लंछन जाणो ॥२॥ अभिनंदन प्रभु विनति ए अंतर्यामी देव विनय विजय उवज्झायनो, रूप नमे नित्यमेव ॥३॥
SR No.032198
Book TitlePrachin Stavan Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivya Darshan Prakashan
PublisherDivya Darshan Prakashan
Publication Year
Total Pages166
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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