SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 161
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ १४० जीनजी प्यारा आदिनाथने वंदन हमारा सिघाचलनावासी, विमलचलनावासी . कंचनगीरीनावासी, रैवतगीरीना वासी साश्वतगीरीना वासी, शेव्रुजयगीरीना वासी पुंडरीकगीरीना वासी, अष्टापदगीरीना वासी चोवीस जीनजी ने वंदन हमारा पुरुषादाणी पार्श्वनाथने वंदन हमारा आज मारा अंतर पटमां पार्श्व प्रभुजी पधारो रे भक्ति करु हु साचा भावे तुम विण आरे न ध्याबु रे काल अनादि बहु दुःख पाम्यो अब तो प्रभुजी तारो रे तुहीज साचो देव दयालु भविजन ने मन भाव्यो रे चारगतिमां नाच करता हु तो प्रभुजी थाक्यो रे चार कशायो दुर करीने अष्ट कर्म ने कापा रे शरणे आव्यो आज तुमारे प्रभुजी मुजने राखो रे शीवनगरी नही देखाडोतो पालवडो तही छोड्ड रे सुरेन्द्र स्वामी पाय नमी कहुं विनतडी अवधारा रे राजेन्द्र विनवे महरे करी ने सिद्धि वधु परणावो रे - - ० प्रभुतारा नाम हजारने आठ क्यानामे लखवी कंकोतरी हे वहाला तारां नाम अनेका अनेक-क्यानामे०
SR No.032198
Book TitlePrachin Stavan Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivya Darshan Prakashan
PublisherDivya Darshan Prakashan
Publication Year
Total Pages166
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy