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________________ [ ११५ [ तारा पावन चरणे स्पर्श करु मारा जनम जनमना दुखडा हरु तारी मुद्राना मलकारे 'मन मारु तारी वाणीना जो पान करु तो भवसागर हुं स्हेजे तरु तारी गंभीरताना धमकारे"मन मारु (५) जनारुं जाय छे जीवन जरा जीनवर ने जयतो जा . हृदय मां राखी जीनवरने, पुराणां पाप धोतो जा ॥१॥ बनेलो पापथी भारे वली पापो करे शीदने सलगती होली हैयानी, अरे जालिम बुझातो जा ॥२॥ दया सागर प्रभु पारस उछाले ज्ञाननी छोलो । उतारी वासना वस्त्रो, अरे पामर तु न्हातो जा ॥३॥ जीगरमां डंखता दुःखो थयां पापे पीछानीने जीणंदवर ध्याननी मस्ती वडे अने उडातो जा ॥४॥ अरे आतम बनी शाणो, बतावी शाणपण तारु हटावी जुठी जग माया, चेतन ज्योति जगातो जा ॥५॥ खोल्यां जे फुलडां आजे, जरुर ते काले करमाशे अखंड आत्म कमल लब्धि तणी दोलमय लगातो जा ॥६॥ प्रभु मेरा में प्रभु तेरा खासी खीजमत धारी रे प्रीत बनी अब निजी तोशु जैसे मीनने वारि रे
SR No.032198
Book TitlePrachin Stavan Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivya Darshan Prakashan
PublisherDivya Darshan Prakashan
Publication Year
Total Pages166
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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