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________________ [ ११४ ] ( ३ ) झनन झनन झनकारो रे बोले आतमनो अकतारो रे हवे प्रभुजी पार उतारो तारतीयाना तोटा नथी पण सूरज चंदा अक छे देव अनेरा दुनियामां पण मारे मन तु ओक छे झनक झनक झनकारो रे, बोले धुधरीनो धमकारो रे... हवे प्रभुजी अवनी पर आकाश रहे, तेम करजो मुज पर छाया निशदिन अंतर रमती रहेजो, मोहन तारी माया चमक चमक चमकारो रे, तारा मुखड़ानो मलकारो रे ...हवे प्रभुजी उषा संध्याना रेशम दोरे, सूरज चन्दा भूले चडती ने पडतीना भूले, मानव सघलां भूले सनन सनन सनकारो रे, तारी वाणीनो रणकारो रे ...हवे प्रभुजी तु छे माता तु छे पिता; तु छे जगनो दीवो श्रीशलाना नानकडा नंदन जगमां जुग जुग जीवो झनक झनक झनकारो रे; मुज प्राण थकी तु प्यारो रे" हवे ( ४ ) टम टम टम टम टीलडीना टमकारे " मन मारु मोह मोहय मोहय रे तारी ज्योतिना भबकारे मन मारु
SR No.032198
Book TitlePrachin Stavan Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivya Darshan Prakashan
PublisherDivya Darshan Prakashan
Publication Year
Total Pages166
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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