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________________ णयणदिविरइयउ [५. २. ५अहवा सारिजूउ खेल्लंते ६ भणिउ आसि सइँ सायरदत्ते । ५ जा कायवि महु पुत्ति हवेसइ सा तुह गंदणासु दिज्जेसइ। तो वरि एवहिं सो मग्गिजइ देइ ण देइ सच्चु जाणिजइ। . अन्भत्थणभंगभए इट् छु" वि अवहेरहि णर कन्जु सुजेट् ठु वि । जइ वि हु एरिसु तो वि ण किजइ . माणु जेण णियकज्जु हणिज्जइ । एत्थंतरि अस्थिय चिंतामणि तहि वि सकजे आयउ सो वणि । १० घत्ता-सायरदत्तु विसुद्धजसु णिरुवमु सवसु लहु वइसारियउ वरासणे । पुणु आउच्छिउ वणिवरेण अइआयरेण अणुरूवइ किय संभासणे ।।२।। पभणहु णियमणि / किं किजइ जे कजे समागया। पभणइ वणिवरिंदु तं किजइ वड्ढइ णेहु जे सया ।।दुवई।। आया कारणेण जेणम्हइँ जाणंत वि पुच्छहु' तं तुम्हइँ । जइ वि तो वि संबंधु कहिजइ किं बहुणा विवाहु विरइज्जइ । रिसहदासु तं णिसुणिवि जंपइ जिणकमकमलिंदिदिरसंपइ। बालही जं विवाहु फुड़ जाणही तंणेवउ तुम्हइँ जि पमाणही। वार वार किं किर बोलिजइ जं पडिवण्णउ तं पालिज्जइ। जहि पेरियउ चित्तु तुम्हारउ तत्थ वियक्कु णत्थि अम्हारउ । इय णिसुणेवि वयणु हरिसोल्लिउ सायरदत्तु झत्ति संचल्लिउ । वरतंबोलहत्थु गउ तेत्तही जोइसगंथकुसलबुहु जेत्तही। १० घत्ता–सिरिहरु णामे जोइसिउ गुरुयणवसिउ आउच्छिउ णवर वणीसे। सुहदसणहा मणोरमहं वरलग्गु कहु तेण वि वज्जरिउ विसेसे ॥३॥ २. ५ क जा साः ख में सो। ६ खत्तो । ७ क तुव । ८ क भोवरिख तो वर। ६ ख सा। १० क सव्वु । ११ क भंगभयट छ; ख भंगभइ इठ्ठ इ। १२ ख दुत्थिय। १३ ख सुकज्जें। १४ क ग घ खणे । ___ ३. १ प्रतिषु 'अच्छहुँ । २ ग घ जिणपय । ३ क तुम्हें जेम। ४ ख ग घ विथक्कु। ५ क कुसलु बहु घ बुह। ६ ग घ कहे ।
SR No.032196
Book TitleSudansan Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNayanandi Muni, Hiralal Jain
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology and Ahimsa
Publication Year1970
Total Pages372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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