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________________ ४. १२. १२] सुदंसणचरिउ भयइंगिण हवइ सुदीणवयण वेविरतणु तह तरलंति णयण । रोसिंगिट डसियाहरु सुखेउ अरुणच्छि फुरियणासा सुसेउ । णेहिंगिष्ट पयडइ हिययगुज्झ पप्फुल्लावइ मुहु सुहय बुज्झ । अण्णमणिंगिट मुहु रायवत्तु गिर सुण्ण जि दरपिहियंसँणेत्तु । दुक्खिगिरणासइ पुव्वछाय णीसरइ मुहाउ ण वियडवाय।। भुक्खिगट खाम कवोल होति वियलइ मई तह पाय ण वहति । कामिगित" छोडइ चिहुरभारु णिस्सेसु वि दावइ तणुवियारु। णिक्कामिगिष्ट दोसाइँ लेइ _गुण झंपइ सेच्छप संचलेइ । घत्ता-धूमे अणलु फुल्लेण फलु जिह किर संभाविज्जइ । बुहसंथुयहिँ तह इंगियहि जणभाउ वि भाविज्जइ ॥११॥ १० भो मित्त । पयईहिँ। भावेहि। देसियहिँ। गुणजुत्त जाईहिँ सत्तेहि भासियहिँ अंसयहिँ वरदेह जाणेसु बहुभमणु कयरोल खलसंग वियराल अवियड्ढ इंगियहिँ। कयणेह। माणेसु। अण्णमणु। धणलोल। दुमियंग। णिहाल। सोयड्ढ़। ११. ५ ख °च्छवि फुरइ णासावसेउः ग घ घुलिय णासा। ६ ग घ गिरि सुबह । ७ ग घ °पिहियंसु। ८ ख दुक्खंगें ; ग घ दुक्खंगिए। ८ घ भुक्खंगिए। १० क मय । ११ ख ग घ कामंगिए। १२ ग घ णिकामंगिए। १३ ख संधियहिं; ग घ संघियहि । १४ ख प्रालिंगियहिं । १२ १ क दमियंग; ग घ दुमिइंग।
SR No.032196
Book TitleSudansan Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNayanandi Muni, Hiralal Jain
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology and Ahimsa
Publication Year1970
Total Pages372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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