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________________ गयणंदिविरइयउ [ ४. ६.६मुणि जेम भयलोहगुरुलज्ज वजंति बहुलम्मि ससि जेम अणुदियहु खिज्जति। दीहुण्हणीसास पुणु पुणु वि मेल्लंति परिहरिवि कुलमग्गु उम्मग्गे चल्लंति । तिक्खयरभावेण णारीउ कंपंति सच्छंदु मयणावयारं पयंपंति । घत्ता–बुहं संसियउ इह भासियउ सुद्धभाउ तिहि भेयहिँ । दुइजउ कहमि णउ तुह रहमि भाउ असुद्धउ एयहि ॥॥ १० अण्णदेसंगममणेण गुरुक्के धगलोहे दुटुमइवियक्के । दुसहेण वि सवत्तिपयणमणे २ वार वार कय अंतोगमणे । अइपसंग अइईसाकरणे - कयपच्छण्णदोससंभरणे । एयहि कारणेहिँ चंचलमणु वहइ असुद्धभाउ जुवईयणु। ते वयणारविंदु वियसावइ ढोयइ हत्थु णाहि थणु दावइ। भंपइ पुणु कलेण उग्घाडइ छोडइ केसबंधु तणु मोडइ। आसत्तउ भणेवि णरु लक्खइ ओसरेवि अप्पाणउ रक्खइ । सो वि वियक्खणेहिँ जाणिजइ बुद्धिहिँ संकिण्णत्तहाँ णिज्जइ । पत्ता-वरणिवसहिँ सुविहूसणहिँ चाडुयवयणहिँ भोयहि । तणुरूवेण पडुदूएण घिप्पइ एह" उवायहिँ १२॥१०॥ १० भो जिगवरपयपंकयदुरेह अण्णमणदुक्खभुक्खासकाम गमणिंगिण सुण्णालाउ होइ णिहिंगिए जंभाइय हवेइ सुणि गमणणिदभयरोसणेह। णिक्काम एस इंगियहिँ णाम । वलियाणणु चारु जि परिणिएइ। लोयण मउलइ गीवा णवेई । ६. ६ क जेमि। ७ ग घ छंदो वि मयणावयारो। ८ क ग व बहु । ६ ग घ एमहिं। १०. १ घ दोस। २ ख णवणें। ३ ख अइवसंग। ४ ख चंचलु मणु । ५ ख करेण। ६ क पासरण। ७ ग घ ऊसरेइ। ८ घ लक्खइ। ६ ग घ हे । १० ख भोयणहिं। ११ ग घ एहि । १२ ख एय उपावहिं । ११. १ क मुणि ( टि० जानीहि ) २ ख ग घ वलियासणु। ३ ख जंभावइ हवेइ । ४ क मउलंगी मारणवेइ (टि० ज्ञायते ); ग घ मउलहिं गीया एवेइ ।
SR No.032196
Book TitleSudansan Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNayanandi Muni, Hiralal Jain
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology and Ahimsa
Publication Year1970
Total Pages372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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