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________________ ३. १२. १२] सुदंसणचरिउ २५ घत्ता - हउँ वण्णमि मण्णमि सो जि पर जं णिएवि ण विरावइ । रइ लुद्धहँ मुद्धहँ लोयणहँ मच्छुच्छल्लणु दावइ ॥११॥ १२ पेक्खेवि सुदंसणु पुरउ झत्ति काश वि णियकंतही किय णिवित्ति । मेल्लंती लोयण चलझलक क वि लज्जन कुड्तरिय थक्क । भुयमूलपओहरणाहिदेसु क वि पयडइ मोडइ तणु असेसु। क वि मयणपरव्वस भणइ बाल हउँ सहवि ण सक्कमि विरहजाल । अवियाणतिष्ट' विरहाउराष्ट्र अणहियन हियउ मइँ दिण्णु माय। किं अण्णहिँ भवि वरतउ ण चिण्णु जे एहउ पइ दइवेण दिण्णु । क वि णिवसणु ल्हसियउ णउ मुणेइ इयरउ विरहिणियउ धीरवेइ । अह सच्चु जि णियपयतले जलंतु जणु णियइ ण उम्मग्गे चलंतु । जिह मणु पसरइ पियवयणु जेत्थु तिह जइ कर पसरहि कहव तेत्थु । तो हेलप आलिंगणु करेइ जणु सय लु णिरंकुसु को धरेइ । घत्ता हे सुहमइ णरवइ वणिसुयही णयणंदिय जणगणहरे । सा णवि तिय रत्तिय जा ण तहा हिंडतही चंपापुरे ॥१२॥ एत्थ सुदंसणवरिए पंचणमोक्कारफलपयासयरे माणिक्कणंदितइविज्जसीस-णएणंदिणा । रइए सुदंसणहो जम्मणं सरसबालकीला पुणो कलाणियरसिक्खणं मणहिरामयं जोवणं असेसपुरसंदरीजणियक्खोहकार्मिगियई इमाग कयवण्णणो तइयउ संधी सम्मत्तउ । संधि ॥३॥ ११. ३ ख ग घ वहि। ४ घ रइलुद्ध इ मुद्धइ । १२. १ क अविमाणंतिए। २ ख अण्णभवे चिर तउ। २ क ग घ ललियए । ४ ख जियए। ५ ख पिय वसइ। ६ क पसरइ। ७ क सयं। ८ ख जणु गुणहरे; गघ जणगुणहरे ।
SR No.032196
Book TitleSudansan Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNayanandi Muni, Hiralal Jain
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology and Ahimsa
Publication Year1970
Total Pages372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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