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________________ २४ पक्क बिंबवण्ण हो विहादु कंठमज्भु सुठु भाइ सुडहुड जित्तसोयवत्त हत्य वच्छु 'चक्कलं विहाइ मज्झए मुट्ठिगेज् सुग्गीरुणाहि सोहगी दो वि पीण जंधियाउ गूढगुफया सहति ६ कुम्माय भास हा पंति १०. ११. दिविर सुहिसहिउ णयरे हिंडंतु भाइ ता सरइ समुहु तो तरुणिजू हु कवि अघाडिय थण करेइ कवि भणइ सुहय थिरु थाहि ताम काहिँ विरइहु हु उ दंसणेण कवि भइ महराहरण लेहि कवि गिरविमुक्त एत्तिउ करे इ कवि भइ रक्खि मइँ एक्कवार सिहितविय सिलाइव हउँ जि तत्त आहरण का विवरीय लेइ किंण होंति लच्छि | रिब्भपुरणमिंदु | तिणिरेहसंखु णाइ । सुरिंदहत्थिसुंड । चूर समत्य । च्छिक हम्मु णाइ | ५ इँ वजदंड णं अणंगसप्पगेहु । -गाई कामरायपीदु । ऊवमाविवज्जियाउ । णाइँ कामरायमंति । । अंगुलिल्ल पाय । छंद समाणियं ति । घत्ता - बहुभेयइँ एयइँ लक्खणइँ अवरइँ जाइँ वि गयमल हूँ । इह दीसहिँ सीसहिँ कइयणहिँ ताइँ ताइँ धम्मो फलइँ ॥१०॥ ११ [ ३.१०.८ उडुगणसमाणु ससि गयणि णाइ । सुरकरिहि णाइँ करिणीसमूहु । इंगिउ ह ण करे घरेइ । महु णयणरंक भवलिंति' जाम । पुणुरुत्तत् किं फंसणेण । बोलावं तिहि पविणु देहि । पण केलि जिह थरह रेइ । विरहिं मारंतिहि णिव्वियार । परकज्जु व तुहुँ सीयलउ मित्त । दप्पणियबिंब तिलउ देइ । ४ ख ग घ चकलो । १ ख धवलेंति; घ धउलिति । २ ख विरहेण मरति ह । ५ ख ग घ इंदवन' । ६ ख कुम्मराय । १० १५ २० ५.
SR No.032196
Book TitleSudansan Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNayanandi Muni, Hiralal Jain
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology and Ahimsa
Publication Year1970
Total Pages372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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