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________________ ८. ३६ ] सुदर्शन-चरित २२५ शरडों ( करकैटों) की वक्रता छूटती नहीं, उसी प्रकार उनके पास से अधिक जिनकी वक्रता कभी छूटती नहीं, उन स्त्रियों के द्वारा सुरत के बहाने कामी पुरुषों के हृदय (प्राणों ) का तृण के समान विनाश किया जाता है ॥४॥ स्त्री कपटपूर्वक ही चलती, कपट से बोलती वा टेढ़ी भौंहें करती; कपटभाव से अपने स्तन व नाभि दिखलाती, कपट से पुनः पुनः मुस्कराती एवं कपटयुक्त होकर अपने अंग मटकाती है। वह कपट से सैकड़ों चापलूसियाँ दिखाती, कपट से सौगंध खाती, कपट से कहती 'तुम्हीं मेरे वल्लभ हो, और कपट से चित्तका हरण करती है ॥५॥ दृष्टिदर्शन, स्नेह, सद्भाव, उपकार, चाटुवचन, दान, संग, विश्वासकरण, कुलकायें, बड़ाई, विनय, धनक्षय, धिक्कार, मरण इन सभी बातों की मर्यादा से च्युत हुई, तुच्छ, कलुषित व भीषण नारी किस प्रकार नहीं मानती, जिस प्रकार एक छुद्र, मलिन व भयंकर वर्षाकालीन गिरिनदी ॥६॥ काव्य, लक्षण ( व्याकरण , तर्क, निघण्टु, छंद, अलंकार, सिद्धान्त के चरण और करणादि भेद, जीवों के अनेक शुभ व अशुभ रूप कर्मप्रकृति के बन्धन, मन्त्र-तन्त्र व शकुन, ये सभी शास्त्र जाने जा सकते हैं, इसमें कोई सन्देह नहीं; केवल एक स्त्री चरित्र को छोड़कर ॥७॥ घोड़े, गधे, सिंह, व्याघ्र, आशीविष ( अजगर ) व सांप, इनका भी चित्त किसी प्रकार जाना जा सकता है, किन्तु इस पृथ्वी की पीठ पर कौन ऐसा है, जो मिथ्याचार में प्रवृत्त स्त्री के चित्त को अणुमात्र भी समझने में समर्थ हो ? विचित्र ग्रहचक्र, समुद्र का जल, व बालू का पुञ्ज, इनका प्रमाण किसी प्रकार जान भी लिया जाय, तो भी स्त्री का चरित्र जाना नहीं जा सकता ॥८॥ खल, अग्नि, नखीले, सींगोंवाले, व डाढ़ोंवाले पशु, राजकुल, शत्रु, सरिता, मित्र, कपटी, रात्रि, मूर्ख, व्यसनी, ठग व दूत, बहुत क्या, सम्भव है इनका भी विश्वास उत्पन्न हो जाय, तो भी स्त्री का अणुमात्र भी विश्वास नहीं किया जा सकता, भले ही उसमें सहस्रों गुण हों ।।६।। नारी चोर होती है, निर्लज्ज, लोभी और चलचित्त होती है। मायाविनी, साहसी, झूठ की खान, परपुरुष-मोहित व शीलगुण-हीन तथा सद्भाव-द्रोहिणी होती है। उसके ऐसे गुण जानते हुए भी जो कोई उसमें प्रतीति करता है, वह नाना दुःखों को प्राप्त होता है व तिल-तिल काटा जाता है॥१०॥ स्त्री के विश्वास से ही यशोधर मरा, साकेतपुर का अधिपति देवरति राज्य से भ्रष्ट हुआ, तथा नौ सहस्र नागों का बलधारी कीचक भी स्त्री का विश्वास करके प्रनष्ट हुआ। और भी जो कोई स्त्री की बुद्धि पर विश्वास करेंगे, उन सभी के गलकन्दल में यम का पाश पड़ेगा ॥११॥ जिसप्रकार भौहों से, जैसी दृष्टि से तथा जैसे वचन बोलने में स्त्री वक्र होती है, उसी प्रकार वह हृदय से भी वक्र होती है। वह स्वेच्छाचार करके पश्चात् लोगों के बीच बार बार गर्जती है। ढीठ स्त्री झूठ पुकार मचाकर और रोदन करके दूसरे को मरवा डालती है। हाय-हाय, स्त्री रूठकर क्या क्या नहीं करती ? कुछ मत कहो ॥१२॥ (अभया की ) उस पुकार को सुनकर, शूरवीर लोग शीघ्र ही धनुष और बाणों से सज्जित होकर विद्युत् की तेजी से दौड़ पड़े; जिस प्रकार कि गर्जना २९
SR No.032196
Book TitleSudansan Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNayanandi Muni, Hiralal Jain
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology and Ahimsa
Publication Year1970
Total Pages372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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