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________________ ( २५ ) समाविष्ट पायी जाती हैं जिनका विस्तार से काव्य-शैली में वर्णन प्रस्तुत ग्रन्थ में किया गया है । बृहत्कथाकोष का रचनाकाल सम्वत् ६८६ अर्थात् प्रस्तुत रचना से १११ वर्ष पूर्व पाया जाता है। प्रस्तुत रचना से २७ वर्ष पश्चात् अर्थात् विक्रम सम्वत् ११२७ के लगभग विरचित श्रीचन्दकृत अपभ्रंश कहकोसु (कथाकोष) सन्धि २२ में भी यह कथानक १६ कडवकों में पाया जाता है। सुदंसणचरिउ की रचना से लगभग एक शताब्दी पश्चात् रामचन्द्र मुमुक्षु ने अपने पुण्यास्रव कथाकोष (१७) में भी इस कथा को समाविष्ट किया है। यहाँ कथानक की रचना संस्कृत गद्य में हुई है। डॉ. हरि दामोदर वेलंकर कृत जिन-रत्न कोष (पूना १९४४) में प्रस्तुत अपभ्रंश रचना के अतिरिक्त पाँच अन्य सुदर्शन-चरित नामक ग्रन्थों का उल्लेख है, जिनके कर्ता हैं ब्रह्मनेमिदत्त, सकलकीति, विद्यानन्द और विश्वभूषण । एक के कर्ता का नाम अज्ञात है । सकलकीति की रचना को तो कोशकार ने संस्कृत भाषात्मक कहा ही है। विद्यानन्द की रचना को मैंने देखा है और वह भी संस्कृत में है। अनुमानतः शेष ग्रन्थ भी संस्कृत में हैं और प्रस्तुत अपभ्रंश काव्य से शताब्दियों पश्चात् की रचनाएँ हैं। प्रस्तुत रचना की आठवीं संधि के ११वें आदि कडवकों में पण्डिता द्वारा सात दिन के लिए सात मनुष्याकार पुतले बनवाना और उनके द्वारा राजप्रासाद के सात द्वारपालों को क्रमशः आश्वस्त करके आठवें दिन सेठ सुदर्शन को उनकी अनिच्छा से भी अन्तःपुर में प्रवेश कराने का वर्णन है। जान पड़ता है यह पुतलों की सूझ कवि को उस अभय कुमार व चण्डप्रद्योत के कथानक से प्राप्त हुई जिसका संकेत नन्दीसूत्र (७९) में तथा विवरण आवश्यक चूर्णि (२ पृ. १५६ आदि) में पाया जाता है। राजगृह के राजा श्रेणिक व राजकुमार अभय और अवन्ती के राजा प्रद्योत में तनातनी और परस्पर छल कपट द्वारा जय-पराजय की परम्परा चल रही थी। अभय को प्रद्योत ने बन्दी बनाया तथा छूटने पर अभय ने प्रद्योत को बाँध कर राजगृह ले जाने की प्रतिज्ञा की। वह एक वणिक् का वेष बनाकर उज्जैनी में रहने लगा। दो वेश्याओं के द्वारा उसने प्रद्योत को उनकी ओर आकर्षित कराया व सातवें दिन मिलने का आश्वासन दिलाया। फिर उसने एक मनुष्य का प्रद्योत नाम रख कर व उसे पागल घोषित कर प्रतिदिन खाट पर बाँधकर वैद्य के यहाँ ले जाने और उसके प्रद्योत-प्रद्योत चिल्लाने का ढोंग रचा। ऐसा छः दिन तक किया गया जिससे नगरवासियों को विश्वास हो गया कि उस वणिक् का एक भाई प्रद्योत नामक पागल है और वह जब उसे बाँधकर वैद्य के यहाँ उपचारार्थ ले जाता है. तब वह 'मैं प्रद्योत हूँ, मैं प्रद्योत हूँ' कहता हुआ चिल्लाता है। सातवें दिन जब राजा प्रद्योत अकेला उन वेश्याओं के निवास स्थान पर गया तब वह अभयकुमार के पुरुषों द्वारा खाट पर बाँध कर ले जाया गया। राजा बराबर चिल्लाता रहा
SR No.032196
Book TitleSudansan Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNayanandi Muni, Hiralal Jain
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology and Ahimsa
Publication Year1970
Total Pages372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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