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________________ नयनन्दि विरचित [ ५. ७किन्तु भग्न होने पर भी लोग उन्हें छोड़ते नहीं, क्योंकि जिनमें स्नेह (घृत व प्रेम ) होता है वे किसे प्यारे नहीं होते ? अच्छे-अच्छे लावण ( नमकीन ) और मोदक (मिठाइयाँ ) लोगों ने खूब पसन्द किये। सजन, स्वजन व सुअन्न में मनमोदक ( मन को प्रसन्न करनेवाले ) गुण होते ही हैं। फिर गोलाकार मांडे लाये गये। वे अति स्वच्छ और पथ्य होने से जिनेन्द्र के निर्दोष व सुमार्गदर्शी गुणों के तुल्य थे। फिर नाना प्रकार के तिम्मण ( अचार चटनी ) दिये गये जो ऐसे अत्यन्त तीखे थे, जैसे स्त्रियों के मन । लोग मधुर द्राक्षारस को ऐसे पी रहे थे, जैसे छैले धूर्त अधर का पान करते हैं। मधुर को छोड़कर लोग तीखा खा रहे थे; अनुराग के कारण दोष भी गुण दिखाई देने लगते हैं। थक्का दही ऐसा मनोहर स्वाद दे रहा था जैसे स्नेह युक्त प्रिया का मान । गरम-गरम दूध पीते बड़ा अच्छा लग रहा था और हृदय को भी जला रहा था, जैसे छुपकर किया हुआ काम। जब सरस भोजन हो चुका, तब बचे हुए भोजन से लोगों को ऐसी विरक्ति हुई जैसे धूर्त द्वारा धृत्तिनी के साथ काम क्रीड़ा कर लेने के पश्चात् अति तृप्ति से उसका परित्याग किया जाता है। ७. सूर्यास्त-वर्णन फिर परकार्य के समान अतिशीतल शुद्ध जल लेकर सभी ने गण्डूषों ( कुल्लों ) द्वारा मुखविवर की शुद्धि की। भोजन करने वाले उन सभी लोगों को कपूर मिश्रित श्रीखंड दिया गया ( चन्दन लगाया गया)। फिर सुपारी पान एवं सुन्दर बड़ी बड़ी पचरंगी पुष्पमालाएँ दी गई। फिर नये नये बड़े उत्सव से जन (बाराती) अपने मनोहर घर लौट आये। इतने में ही दिनेन्द्र (सूर्य) मंद-तेज हो गया, व अस्त होते हुए ऐसा विचित्र दिखाई दिया जैसे अर्थवान् ( धनी ) शोकचिन्ताओं से विचित्त ( उदास ) हो जाता है। (उस समय मानो डूबते सूर्य से) निर्दहन हेतुक ( जलानेवाली ) अग्नि में तेज आ गया ; तथा मानिनी स्त्रियों ने भी राग धारण किया। मानों ( डूबते सूर्य ने ) भवितव्यता को जान कर नभरूपी तरुवर का फल झटपट दे डाला हो, जो यथाकाल अतिपक्व होकर टूट गया और गिर पड़ा, एवं कामराग के रूप लोगों में अनुराग उत्पन्न करने लगा। अथवा मानों नभश्री रूपी स्त्री के स्नान करते समय उसका रवि रूपी सुन्दर कनक-कुंभ खिसक पड़ा हो। ( यह चन्द्रलेखा नाम का दुबई छंद है)। फिर प्रहररूपी प्रहारों से आहत और आरक्त (लाल वा लोहूलुहान ) हुआ वह संतापयुक्त रवि सागर में निमग्न हो गया। (देखिये तो इस कम की गति को ? ) उस उर्ध्वलोक के पति को भी निशा राक्षसी ने निगल लिया। ८. रात्रि-वर्णन बहु-प्रहरों के पश्चात् सूर्य अस्तमित हुआ, ( मानों ) बहुत प्रहारों से शूरवीर नाश को प्राप्त हुआ। अथवा, क्या कहा जाय-जो वारुणि (पश्चिम दिशा ) से
SR No.032196
Book TitleSudansan Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNayanandi Muni, Hiralal Jain
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology and Ahimsa
Publication Year1970
Total Pages372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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