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________________ नयनन्दि विरचित [ ५.३ ( ऋषभदास जब इस प्रकार विचार कर रहा था तब ) उसी बीच प्रार्थी के लिए चिंतामणि के समान वह सागरदत्त सेठ अपने किसी काम से वहां आ पहुँचा । वणिग्वर (ऋषभदास ) ने उस विशुद्ध यशस्वी निरुपम धनी सागरदत्त को शीघ्र ही उत्तम आसन पर बैठाया और फिर यथोचित संभाषण करने के पश्चात् अत्यन्त आदर से पूछा । १६४ ३. वर-कन्या के पिताओं की बातचीत कहिये अपने मन की इष्ट बात; जिस कार्य से आप आए हैं, उस सम्बन्ध में क्या किया जाय ? तब उस वणिग्वर ने कहा- ऐसा किया जाय जिससे सदैव अपना स्नेह बढ़ता रहे। जिस कारण से हम आए हैं उसे आप जानते हुए भी पूछते हैं । यद्यपि ऐसी बात है, तो भी मैं संबंध ( प्रसंग ) कहता हूँ । बहुत कहने से क्या ? विवाह रचाया जाय। यह सुनकर जिन भगवान के चरण कमलों की भ्रमरसम्पत्तिस्वरूप ऋषभदास बोला- तुम तो स्पष्ट जानते ही हो कि बालक का विवाह करना है, उसी को आप प्रमाणित ( कार्यान्वित ) कीजिये । बार-बार तो क्या बोला जाय, जो बात आप पहले ही स्वीकार कर चुके हैं उसी का पालन किया जाय। जिस बात पर तुम्हारा चित्त प्रेरित हुआ है, उसमें हमारा कोई वितर्क नहीं है । ( ऋषभदास का ) यह वचन सुनकर हर्षोल्लसित हुआ सागरदत्त भट वहाँ से चल पड़ा, और हाथ में उत्तम तांबूल लेकर वहाँ पहुँचा जहाँ ज्योतिष ग्रन्थ का कुशल विद्वान, गुरूजनों का भक्त श्रीधर नाम का ज्योतिषी रहता था । उससे सेठ ने पूछा- सुदर्शन और मनोरमा के विवाह के लिए उत्तम लग्न कहिए । तब ज्योतिषी ने विशेष रूप से बतलाया । ४. ज्योतिषी द्वारा लग्न - शोध और विवाह की तैयारी स्पष्टतः वैशाख मास में, शुक्लपक्ष की पंचमी तिथि को रविवार के दिन, मूल नक्षत्र, शिवयोग, कपिल करण में, सूर्य के उदय होने से तेरह घड़ी और पचास पल चढ़ जाने पर मिथुन लग्न होगा, जो वधु-वर के मनों को सुख उपजानेवाला है । ज्योतिषी की यह बात सुनकर सेठ अपने घर चला गया । उसने शीघ्र ही विवाह की समस्त सामग्री एकत्रित की। बांधव - स्वजन व इष्ट - मित्र, कौन ऐसे थे जो प्रसन्न नहीं हुए ? दोनों घरों में सुन्दर घरों में अनुपम तोरण लगाये गये। दोनों घरों में दोनों ही घरों में रत्नों की रंगावली की गई। दोनों ही घरों में धवल मंगल गान होने लगे। दोनों घरों में गम्भीर तूर्य बजने लगा। दोनों ही घरों में विविध आभरण लिए जाने लगे। दोनों ही घरों में सुन्दर तरुणियों के नृत्य होने लगे । यह उपाख्यान ( कहावत ) सत्य ही है कि नारियों को कलह, दूध, जामाता और तूर्य मण्डप रचे गये। दोनों केशर की छटाएँ दी गई।
SR No.032196
Book TitleSudansan Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNayanandi Muni, Hiralal Jain
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology and Ahimsa
Publication Year1970
Total Pages372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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