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________________ १७६ नयनन्दि विरचित ३. मनोरमा का सौन्दर्य उसकी कोमल बाहुओं को देखकर मृणालतन्तु भी उनके गुणों का उमाह करते थे। उसके सुललित पाणिपल्लवों की कंकेलीपत्र भी अभिलाषा करते थे । उसके शब्द को सुनकर अभिभूत हुई कोकिला ने मानों कृष्णत्व धारण किया है। उसके कंठ की तीन रेखाओं से निर्जित होकर ही मानों शंख लज्जा से समुद्र में जाडूबे हैं । उसके अधर की लालिमा से विद्रुमों की लालिमा पराजित हो गई, इसी से तो उन्होंने कठिनता धारण कर ली है। उसके दांतों की कांति द्वारा जीते जाने के कारण निर्मल मुक्ताफल सीपों के भीतर जा बैठे हैं। उसके श्वास की सुगंध को न पाने से ही पवन अति विह्वल हुआ भागता फिरता है । उसके निर्मल मुखचन्द्र के समीप चन्द्रमा ऐसा प्रतिभासित होता है, जैसे वह गिरकर फूटा हुआ खप्पर हो । उसके नासिका-वंश से उपहासित होकर सूआ अपनी नासिका को टेढ़ी बनाकर प्रकट करता है । उसके नयनों का अवलोकन करके हरिणियों ने विस्मित होकर गहन वन में अपनी प्रीति लगाई है। उसकी भौंहों की गोलाई से पराजित होकर ही तो इन्द्रधनुष निर्गुण ( प्रत्यंचाहीन ) हो गया है। उसके भाल से जीता जाकर कृष्णाष्टमी का चन्द्रमा खेद-वश आज भी क्षीण हुआ दिखाई देता है । उसके केशों द्वारा जीते जाकर भौरों के झुण्ड रूनझुन करते हुए कहीं भी सुख नहीं पाते। उस सुकुमार बालिका के सुन्दर रूप को देख मन में विस्मित होकर सुदर्शन ने अपने मित्र से पूछा । [ ४. ३ ४. मनोरमा का परिचय यह तारा है, या तिलोत्तमा या इन्द्राणी ? या कोई नागकन्या यहां आकर खड़ी हो गई है ? अथवा यह कोई उत्तम देवांगना है ? अथवा यह स्वयं धृति है, या कृति, या सौभाग्य की निधि ? क्या यह कांति है, या कवीन्द्रों द्वारा स्तुत सुबुद्धि (सरस्वती) ? अथवा उत्तम कान्ति से युक्त रोहिणी है या रण्या ? यह मन्दोदरी है, या जनकसुता, अथवा सुन्दर भुजाओं वाली दमयन्ती ? क्या यह प्रीति है, या रति, अथवा खेचरी ? क्या यह गंगा, उमा अथवा कोई किन्नरी है ? अपने मित्र की यह बात सुनकर कपिल बोला- हे मित्र, तुम नशे में हो, या किसी ग्रह के वशीभूत ? जो सागरदत्त धनिकों में श्रेष्ठ है, जिसके हाथियों का भी धन है, जो लोगों के दुःखों को हरण करनेवाला है, जो पांच अणुव्रतों और अन्य भी तीन गुणव्रतों एवं चार शिक्षाव्रतों तथा अनस्तमित व्रत का पालन करता है, जो जीव- हितकारी सुमित वचन बोलता है, और जो कर्म रूपी वृक्षों को काटनेवाला है; (यह तोड़नक छन्द कहा जाता है) उस सागरदत्त सेठ की सागरसेना नाम की उन्नतस्तनी और अनुपम पत्नी है । उसी से उत्पन्न यह सुरगणिका के समान मनोरमा नाम की कन्या है ।
SR No.032196
Book TitleSudansan Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNayanandi Muni, Hiralal Jain
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology and Ahimsa
Publication Year1970
Total Pages372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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