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________________ १२. ६. ५ ] अरुहदेउ दोसहिँ परिचत्तउ अहिंसा लक्ख गुणहरु उ मण्णइ मिच्छत्तपरव्वसु अाणि सुदंसणचरिउ ४. ५. ६. पावाणि सहि भाइ थिउ जिणु समक्खु अवर व असे रेहति के छंद विह घत्ता - तर्हि पुच्छंत संतहँ अइउवसंतहँ भूरिभत्तिभरणमियहँ । णिरु संसारविरत्तहँ तग्गयचित्तहँ कहइ महामुणि भवियहँ || ४ || ५ सुमणोज्जे वाणि । समसराइँ । वरके लक्खु । अइसविसेस | जिणवरहो जेम । णिरु चंदलेह | रिसिगुरु णिज्झायइ रयणत्तउ । "ग्गिंथु मोक्खमग्गु विवरु । करइ पाउ मोहंधु सतामसु । भमइ मीणु णं पारावारण । अच्छइ उप्पज्जंतु मरंतर । सुइण धम्मु जंजि अविरुद्धउ । अह थक्कइ तवचरण।' संकइ । विण मोक्खु पाविज्जइ । संसारन चाईहिँ दुखाइँ सहंत उ लहइ णं मणुयजम्मु अह लद्धउ अह सु हियए उ थक्कइ विणु तवेण णउ झाणुप्पज्जइ धत्ता - तो वितरि उवसंतिय भणइ णमंतिय मुणिवर एत्तिउ किज्जइ । ता महरवाणी मुणिवरण इय वृत्त । सुरतिरयणारयहँ तर हवइ उ जुत्तु ॥ तुह हवइ पर एक्कु सम्मत्तु मलणासु । णिस्संक प मुहट्ठगुणरयणआवासु ॥ ता ता वितरि लहु लयउ सम्मन्तु । १ ख ग घ समणोज । २ ख ग घ भत्तिवर' । १ क गणहरु । २ ख लहविणु । ३ खणिसुवि । १ क एहु । १४७ महु रउरवे णिवडंतिर्ह दुण्णयवंति दय करेवि त दिज्जइ ॥ ५ ॥ १० ४ ग घ चरणें । १० ५ ५.
SR No.032196
Book TitleSudansan Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNayanandi Muni, Hiralal Jain
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology and Ahimsa
Publication Year1970
Total Pages372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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