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________________ १३६ ११. १८. १२] सुदसणचरित कहिँ चलहु कहिँ वलहु कहिँ जियहु कसु कहहु । णियसुयहिँ सहु पियहिँ कहिँ विसवि दिहि लहहु ।। असरिसहि जललवहिँ झलझलइ महिवलउ । पुणु वहइ घरु णयाँ गिरिसिहरु टलटलउ । पुणु कलइँ गिलिगिलइँ णहि मिलइँ णिरु रसइँ । अइपबल हलमुसल पुणु पुणु वि खल दिसइँ ॥ णउ तइ वि णियखणही मुणि चलइ गुणणिलउ । इय भणिउ दहदहहिँ लहुकलहिँ ससितिलउ ।। घत्ता-तणु मणु वयणु णिरुभियउ जेण मुणिणाहें। तही किर को गहणु पउरेण" वि णीरपवाहें ॥१४॥ १८ विडवीविडवघडणउप्फडियतिडिक्कावलिश पिंगलो । रयभरभरियभुवणभवणोयरु पुणु णिम्मिउ महाणलों ॥रचिता।। जाम साहू ण जोयाउँ संचल्लिओ धीरओ। जाम णीसेसगंथो गुणावासु गंभीरओ ॥ ताम तिव्वेण कोवेण सा विंतरी कंपिया। चंड आला तुंडेण मेल्लंतिया जंपिया। आसिकाले मसाणाउ आणेवि मण्णाविओ। तो पहाए कुवारेवि डंभेण गंजाविओ ॥ रक्खसेणावि तं रक्खिओ एहि को रक्खए । एम जंपेवि गंतूण पायाले दुक्खक्खए । बाहुदंडेहि तीए धरावीढु उच्चावियं । तेण उच्चं महासेल्लचकं पि कंपावियं ॥ १७. ७ ग घ पुणु हवइ घर णियरु। ८ क कहा। १ ख करि गिलइ । १० ख दहदिहहिं लहु कलउ। ११ ख पवरेण । १८. १ क उप्पडिय। २ ख महाणिलो। ३ ख जोयेण; ग घ जोयाण । ४ क ख मालाउ। ५ ख आणावि। ६ क रक्खसेणेवि । ७ क उच्चाइयं ; ख मुच्चाइयं ।
SR No.032196
Book TitleSudansan Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNayanandi Muni, Hiralal Jain
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology and Ahimsa
Publication Year1970
Total Pages372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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