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________________ ८. ३६. ३० ] सुदंसणचरिउ गंजइ गंजावेइ णिरु बहु अणत्थ पयडेइ । सिहिजालोलि व पन्जलिय परपाणहँ णिवडेइ ।।२।। विसम वंकिय णीयरय गहिर बहुविब्भम बहुभमण उहयपक्खदूसणपयासिय । तीरिणि जिह तिह" जुवइ मंदगइ सलोणहु' समासिय ।। सिहिधूमोलि व वरघरही मइलिणि साहंकार । विससत्ति व मरणुव्वहण तिक्खिय जिह असिधार ॥३॥ १५ हरिणसिंगहँ वंसमूलाहँ मंजिट्ठलयाजडहँ अंकुसाहँ अहिमयरदाढहँ"। णइवलणहँ १४ खलयणहँ तह य तुरयगीवहँ सराढहँ ॥ आयहँ पासिउ अब्भहिय" बंकिम ण चलइ जेण । हम्मई तीयहिँ तिणु व हिउ कामिहि" सुरयछलेण ।।४।। २० कवडु चल्लइ कवडु वोल्लेइ वंकद्धभउहउँ करइ कवडभाव थणगाहि" पयडइ। कवडें" पुणु पुणु दर हसइ पुणु वि कवडजुय अंग मोडइ ॥ कवडे चाडुयसय दिसई कवडें सउह करेइ। कवडें तुहुँ वल्लहु भणइ कबडें चित्तु हरेइ ।।५।। दिट्ठिदंसणु" णेहु सब्भाउ उवयारु चाडुयवयणु दाणु संगु वीसासकरणु वि । कुलकज वड्डिम विणउ दव्वहरणु धिक्कारमरणु“ वि ।। इय सयल वि मज्जायचुय णारि ण मण्णइ केम । तुच्छ सकलुसिय भीसणिय पाउसगिरिणइ जेम ॥६॥ ३० ३६. ६ ग णियर गहिर घ णिय गहिर। १० ख तिह खलु । ११ क सलोणिहिं । १२ क मरणु जणहि ख मारण वहण । १३ ख अइमइर'; ग घ अइमयर । १४ ख णइ चलणहं । १५ ख अभयहिय । १६ घ हरणइ। १७ क तिण विहियउ (टि० तृणं कृतः ); हम्महि तिय तेण जि विहिउ ग घ तियहे तेण हियउ । १६ ख कामेहि ग घ काहिमि। १६ क कवलु। २० ख कवडभाइ थणहाइ। २१ क कवलें । २२ ग घ जुइ अंगु। २३ ख सयई दिस। २४ क सव्वहं (टि० सर्वेषामपि )। २५ क हिट्ठियदंसणु, घ हिट्ठिदंसगु । २६ ख प्रवयार चाडय वयण । २७ ख कुललज्ज । २८ क घिकारणु ।
SR No.032196
Book TitleSudansan Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNayanandi Muni, Hiralal Jain
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology and Ahimsa
Publication Year1970
Total Pages372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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