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________________ जयणदिविरइयउ [८. २५. १८घत्ता-हे सुंदर अम्हहिँ दुहिँ वि जईहें कालु गमिज्जइ। तो सग्गेण मणोरहण लगुण वि भणु किं किज्जइ ॥२५॥ २६ सुहय जइ इच्छसे' संखकुंदेंदुणीहारहाराभहीरंगगंगातरंगावलीपंडुर। पढमबितिचारपंचछसत्तट्ठअण्णण्ण-माणिक्कभूमिहि भाभासियासेसदिग्गंतर ॥ विविहकुसुमोहकिंजक्कसंमिस्सकथूरिकप्पूरकस्सीरयामोयधावंतइंदिदिरं। चलियतियपायमंजीरझकारसदेण उम्मत्तणच्चतमोरेहिँ उम्भासियं मंदिरं ॥ (चंडवालुं त्ति णामेण दंडो इमो) जइ इच्छहि बालउ अलिणिहबालउ कुवलयसामलिउ । मयरद्धयलोलिउँ भुंभुरभोलिउ किसलयकोमलिउ ॥ थणभारक्कंतिउ जियससिकंतिउ कुलिसकिसोयरिउ। . ओलंबियहारउ जणमणहारउ रइहे सहोयरिउ ॥ (भ्रमरपदों णाम छंदो) वरराउलं उब्भियविविहछत्तसिरिग्गिरिधयवडेहिँ समाउल । जणपेसलं जइ इच्छहि वणिंद णिच्चुच्छवेहिँ रइयमंगल" ॥ (मुखंगलीलक्खखंडकं) जइ इच्छसि मणोजे चंचला हया णिज्झरवंत उत्तुंग सइलोवम गया। कंचणमणिमऊहचिंधइये रहवरा सेवागय असेस पणवंति किंकरा ॥ (आवली छंदो) घत्ता-ता मइँ अणुहुंजहि सुहय इह होहि महियले राणउ । मा सञ्चिलउ करेहि तुहुँ तं "संखिणिहिकहाणउ ॥२६॥ २५. ६ ख मि; ग घ दुहिं जइ । २६. १ ख इच्छसि। २ ग घ हारब्भगंगा। ३ ख पंडरं । ४ क भाभासुरं असेस दिग्गंतर ख तामासिरं देसदिग्गंतरं । ५ ख चंदयलो णामो। ६ क ख इच्छइ। ७ प्रतिषु 'भोलिउ'। ८ ख भ्रमरपट्टा। ९ क ख सिग्गिरि । १० ख रामाउलं; ग घ रमाउलं। ११ घ णिच्चुच्छविरइय। १२ ख मुखंगलीलवलाखंडकं । १३ घ समणोज्ज । १४ घ तुंग। १५ क मणिहि चिचइय। १६ ख कउंडी।
SR No.032196
Book TitleSudansan Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNayanandi Muni, Hiralal Jain
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology and Ahimsa
Publication Year1970
Total Pages372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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