________________
८. २५. १७]
सुदंसणचरिउ लोलचक्खुसोयघाणजीहफासपेरणेहिँ ॥ एम चिंतिऊण लेइ सुप्पइण्ण सो वणिंदु।
वुत्तु अद्धजाइया य एस चित्तु णाम छंदु ॥ घत्ता-जई कहमवि उव्वरिउ हउँ जमकरणही एहट अवसर। तो लेसमि जिणभासियउ तउ कल्ले संहुए वासरं ॥२४॥
२५ इय जाम वयपुण्ण
थिउ लेई सुपइण्ण। पिच्छेवि सहसत्ति
चिंतेइ णिवपत्ति। पच्चक्खु श्हु मारु
परिचत्तसिंगारु। जइ तणु पसाहेइ
तो जगु वि मोहेइ। विरहग्गिसंतत्तु
केत्तडउ महु चित्तु । पुणु भणइ सच्छेहि
णिम्मीलिअच्छेहिँ। झाएहि किं णाह
उत्तत्तकणयाह। मुहजित्तमयवाह
तियचित्तमयवाह भो सुहय इह जम्म णिपवित्ति' जिणधर्म। करिऊण आयासु
पाविहसि सुरवासु किं तेण सोक्खेण
जं होइ दुक्खेण । लइ ताम पच्चक्खु
तुहुँ माणि रइसुक्खु। मा होहि अवियारु
संसार तं सारु। भुंजियइ जं मिट्ठ
म्राणियइ समणिहु। परजम्मु किं दिङ
कउलागमे सिटु । जाणेहि फुडु मार
लाएहि किं वार। लीलाट पय दिति
गय चारु पयपंति।
२४. ३ ख पट्ठि जाइ जाप्पएसुः ग घ अट्ठि जाइया पएस। ४ क कइ । ५ ख ग घ कल्लाणई हुय वासरे।
२५. १ घ लेवि। २ क ग घ जि। ३ ख विरहम्मि। ४ ग घ इय । ५ ग घ णयचित्त। ६ क माणिरं सोक्खु । ७ खणं। ८ ख । ।