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________________ जयणदिविरइयउ [८. २. ३मही वेयण एइ तहा घणिय तं णिसुणेवि भणइ णरिंदपिय। 'तुम्हइँ अमुणिउ णउ किं पि जहिं अक्खमि पंडिश हउँ काइँ तहि । तो भणइ विउसि किं रहहि महुँ ण मुणेमि किं पि लई कहहि तुहुँ। ५ अह भणइ अभय णउ तुह रहमि पंडित सुगुं अंतरंगु कहमि । जइ पावमि सुहदसणहा रइ सो मयणु ण पीडा महु करइ । अह जइ ण तासु सुहयही मिलिय तो मार ण जीवमिाणित्तुलिय । ता चविउ बुहिम मइवतियए करयलहिँ कण्ण झंपत्तियए। पुत्तिय जं पइं उग्गीरियर बलि किउ तं श्रुत्थुक्कारियउ। मरिसइ सो जो पइँ णड सहइ तुहुँ जीवहि-ताम जाम पुहइ । [पद्धडियामाम छंदो] घत्ता-सो पुणु पंणिवरु बुहत्तिलउ जिणवरकमकमलहँ भत्तउ । पंचाणुव्ययपमुह सुहँसावयवय धरइ णिरुन्तउ ॥२॥ जो सम्मत्तरयणपरिमंडिउ लच्छिश पणयणीय अवरुडिउ । अयसयम्मु जो दूरे वजइ सो किम परहा णारि पडिवजई। एक्के हत्थं तालुं किं वजइ किं मरेवि पंचमु गाइजइ। किजइ अणुरइ तहो जो मण्णइ जो पुणु अणुणियंतु अवगण्णइ । होउ सुवण्णेण वि ते पुज्जइ कण्णजुयलु जसु संगे छिज्ज । दोदिसेहिं रत्तउ सुमणोरम गणमि णेहु पिंचुर्यपिंछोवम् । एक्कदिसाय सुट्ठ अहिरामे सिहिपिंछोवमेण किं पेम्मे १० ॥ कहिँ तुहुँ कहिँ सो ' कहिँ अवरुंडहि दूरट्ठियहाँ णेहु लहु छंडहि । घत्ता- इय णिसुणेविणु तहे वयणु अभयामहएवि पवुच्चइ । एन्तहे तुहु सिक्खावयणु उत्तहे वि सुदंसणु रुच्चइ ॥३॥ १० २. ३ ख तहिं जि थिय। ४ ग घ 'अभयामहएवि सराउलिय' यह पाठ अधिक है। ५ ग घ तुम्हहं अमुणियउ ण किं । ६ ख लहु। ७ ख सुणि। ८ क ख पंचाणुव्वयमुद्धरहि । ३. १ ग घ अयसमग्गु । २ ख परिवज्जइ। ३ ख ताल। ४ ख किं णरेण । ५ ख अणुणवंतु। ६ क हिज्जइ ग घ दिज्जइ। ७ क बेहिसेहि ग दोहि सेहिं । ८ ख पिंडये । ६ ख सुह अहिरामो १ ख पेमो। ११ ख कहिं सो कहि तुहं । १२ खइ। १३ क लइ। १४ क एत्तउ ख एतहिं ।
SR No.032196
Book TitleSudansan Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNayanandi Muni, Hiralal Jain
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology and Ahimsa
Publication Year1970
Total Pages372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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