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________________ ७. ३. १०] सुदंसणचरित तही सोहग्गु कविल णिसुणंतिय उवरोहियही कविलभट्टहा पिय। मिगलोयण पाडलगइगामिय कुसुमाउहवाणहिँ आयामिय। वार वार अणिबद्धउ जंपइ विहिलंघलु हवेइ खणे कंपइ । खणे रोमंचु होवि सुपसिन्जइ विरहु वि सण्णिवायजरु णजई। तहे सरायमणु दिसिहँ पधावइ करिपयदलिउ तुच्छ जलु णावइ । अह ण कवणु णेहे संताविउ पवणे धयवडो व्व कंपाविउ । मालव देसि गउडि" हिंदोलउ महु ण सुहाइ भणहि भावालउ । पंचमु पंचमु सरु णं कामही हलि सहि विरहणेहु उवसामही । घत्ता-कविलहिँ वयणेण सहियष्ट" पंचमु वुत्तउ । सबिसेसे ताई पंचेसहो सरु खुत्तउ ॥२॥ सुदंसणे जायसुहस्स' लुद्धए परोक्खराएण रयान मुद्धए । मुएवि णीसास सहेल्लिअग्गए पयंपियं तोरणखंभलग्गए ॥ वंसत्थ ।। बहिणि मज्मुवेयण ण वियाणहि जइ जाणहि तो सो वि ण आणहि । जो सजणमणणयणार्णदणु सुहउ णाइँ गोविंदही गंदणु । पुरवरम्मि णीसेसउ गणियउ पुप्फसिलीमुहेहिँ जे वणियउ । इय वरगुणु ण जाइँ सो पाविउ ताहि जीउ फुड़ अइसयपाविउ । तही विरहाणलेण हलि महु तणु डझइ हुयवहेण णं जरतणु । चंदु वि मज्मु मणही णो भावइ इय मुणेवि करि जं तुह भावइ । घत्ता-तो सहयरिया मग्गे जंतउ लक्खिउ । ___ कविलहे विहसेवि ती सुदंसणु अक्खिउ ॥३॥ २. ५ ख मोहामिय। ६ क विहलंघणु। ७ ख होइ। ८ क णिज्जइ । ६ ख तहिं रायइ मणुः ग घ ताहे रायमणु। १० ख वडोउ। ११ क ग घ मा लवेसि गउडी। १२ क ख भणइ। १३ क पंच विसमसरु कामहो। १४ ग घ हल। १५ ख सहियहि ग घ सहिए। १६ ख तहो पंचेसरु।.. ३. १ ख ग घ सुदंसणुज्जाय सुहस्स। २ ग घ थंभलग्गए। ३ क जाणइ । ४ ख जो ग घ जं। ५ ख जसेण। ६ ग घ मणु । ७ ख ण वि। ८ ख तहो सहित यरियाई। ९ क यउ।
SR No.032196
Book TitleSudansan Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNayanandi Muni, Hiralal Jain
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology and Ahimsa
Publication Year1970
Total Pages372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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