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________________ निर्वाणी नित्यनित्य करे, शासन संघ सनूर ॥६।। (128) चोवीश जिन लंछन- चैत्यवंदन ऋषभ लंछन वृषभदेव, अजित लंछन हाथी; संभव लंछन घोडलो, शिवपुरनो साथी. १ अभिनंदन लंछन कपि, कौंच लंछन सुमति; पद्म लंछन पद्म प्रभु, विश्वदेवा सुमति. २ सुपार्थ लंछन साथीयो, चंद्रप्रभ लंछन चंद्र; मगर लंछन सुविधि प्रभु, श्री-वच्छ शीतल जिणंद. ३ लंछन खड्गी श्रेयांसने, वासुपूज्यने महीष; सुवर लंछन विमळ देव, भवियां ते नमो शीष. ४ सिंचाणो जिन अनंतने, वज्र लंछन श्री धर्म; शांति लंछन मृगलो, राखे धर्मनो मर्म. ५ कुंथुनाथ जिन बोकडो, अरजिन नंदावर्त; मल्ली कुंभ वखाणीओ, सुव्रत कच्छप विख्यात. ६ नमि जिनने नीलो कमळ, पामीले पंकज मांही; शंख लंछन प्रभु नेमजी, दिसे उंचे आंही. ७ पार्श्वनाथजीने चरण सर्प, नीलवरण शोभित; सिंह लंछन कंचन तनु, वर्धमान विख्यात. ८ ओणी परे लंछण चिंतवीओ, ओळखीओ जिनराय; ज्ञानविमल प्रभु सेवतां, लक्ष्मी रतन सूरीराय. ६ (129) श्री चोवीस तीर्थंकर राशीनु चैत्यवंदन शांति नमि मल्ली मेष छे, कुंथ अजित वृषभ भाति; संभव अभिनंदन मिथुन, धर्म कर्क सिंह सुमति. १ कन्या पद्मप्रभ नेम वीर, पास सुपास तुलाओ; राशी वृश्चिक धन ऋषभदेव, सुविधि शीतल जिनराय. ३ मकर सुव्रत श्रेयांसने, बारमा घट मिन लील; विमल अनंत अर नामथी सुखदाय श्री शुभवीर. (130) पद्म प्रभु ने वासु पूज्य, दोय राता कहीजे; चंद्रप्रभ ने सुविधिनाथ, दो उज्वल लहीओ. १ मल्लिनाथ ने पार्श्वनाथ दो, नीला निरख्या; मुनिसुव्रत ने नेमिनाथ, दो अंजन सरिखा. २ सोळे जिन कंचन समाओ, ओवा जिन चोविश; धीर विमळ पंडीत तणो, ज्ञान विमळ कहे शिष्य. ३ (131) श्री चोवीश जिननां देहमान, चैत्यवंदन प्रथम तीर्थकर देहडी, धनुष पांचसे मान; पचास पचास घटाडतां, सो
SR No.032195
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDinmanishreeji
PublisherDhanesh Pukhrajji Sakaria
Publication Year2001
Total Pages634
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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