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________________ 451 अष्टमी फळ तिहां, पूछे गौतम स्वामरे, भविक जीव जाणवा कारणे, कहे वीर प्रभु तामरे, वि० ॥६॥ अष्ट महा सिद्धि होय एहने, संपदा आठनी वृद्धि रे, बुद्धिना आठ गुण संपजे, एहथी अष्टगुण सिद्धि रे, वि० ॥७॥ लाभ होय आठ परिहारनो, आठ पवयण फल होय रे, नाश आठ कर्मनो मूळथी, अष्टमी- फल जोयरे वि० ॥८॥ आदि जिन जन्म दिक्षा तणो, अजितनो जन्म कल्याणरे, च्यवन संभव तणो एह तिथे, अभिनंदन पाम्या निर्वाण रे, वि० ॥६॥ सुमति सुव्रत नमि जनमिया, नेमनो मुक्ति दिन जाणरे, पार्थजिन एह तिथे सिधला, सातमां जिनच्यवन माणरे वि० ।।१०।। एह तिथे साधतो राजीयो, दंड वीरज लयां मुक्तिरे, कर्म हणवा भणी अष्टमी, कहे सूत्र निर्युक्ती, रे, वि० ॥११।। अतीत अनागत काळना, जिन तणा केई कल्याण रे, एह तिथे वळी घणा संयमी, पामशे पद निर्वाण रे, वि० ॥१२॥ धर्म वासित पशु पंखीयां एह तिथे उपवास रे, व्रतधारी जीव पोसह करे, जेहने धर्म अभ्यासरे, वि० ॥१३॥ भाखी वीर आठम तणो, भविक हित अधिकाररे, जिनमुखे उच्चरी प्राणीयां, पामशे भवतणे पाररे, वि० ॥१४॥ एहथी संपदा सवि लहे, टळे कष्टनी कोडीरे, सेवजो शिष्य बुद्ध प्रेमनो, कहे कांति करजोडी रे, वि० ॥१५॥ (कळश) इम त्रिजग भासन अचल शासन, वर्धमान जिनेश्वरूं, बुद्ध प्रेम गुरु सुपसाय पामी, संथुण्यो अलवेसरू, जिन गुण प्रसंग, भण्यो रंगे, स्तवन ए आठम तणो, जे भविकभावे सुणे गावे, कांति सुख पावे घणो । (11) श्री पार्श्वनाथ जिन ८ ढाळनुं स्तवन सरस्वति सामिणि माय, आपो मुजने पसाय; पास जिणंद तणाए, के दशभव गायवाए ॥१॥ पोतनपुर अरविंद, राज करे जिम चंद; विश्वभूति तस तणोए, के पुरोहित गुण नीलोए, ॥२॥ घरणी अनुद्धरा तास, पुत्र जण्या बे खास, कमठ मरूभूति ए, के बीजो समकित मति ए ॥३॥ मरूभूतिनी नारी, कमठे भुवन मोझारी, एकदा भोगवीए, के राय खबर लहीए ॥४॥ राये काढ्यो जाम, तापस हुओ ताम, डुंगरे तप करे ए, के मन मत्सर धरेए ॥५॥ कमठ पाय प्रणमेव, मरूभूति खामेय; शिलातळे चांपीयो ए, के पहेलो भव हुवो ए ॥६॥ बीजो भव हवे जोई, मरूभूति हाथी होई;
SR No.032195
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDinmanishreeji
PublisherDhanesh Pukhrajji Sakaria
Publication Year2001
Total Pages634
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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