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________________ 450 देश मगध सहुमां शिरेरे लोल, हारे मारे नगरी तेहमां राजगीरी सविशेषजो राजेरे त्यां श्रेणिक गाजे गज परे रे लोल ||१॥ हारे मारे गाम नगर पुर पावन करता नाथजो, विचरंता तिहां आवी वीर समोसर्या रे लोल, हारे मारे चौद सहस मुनीवरना साथे साथ जो, सुधारे तप संयम शीयले अलंकर्या रे लोल, ॥२॥ हारे मारे फूल्यां रस भर झूल्यां अंब कदंब जो, जाणुं रे गुण शील वन हसी रोमांचीयो रे लोल, हारे मारे वाया वाय सुवास तिहां अविलंबजो, वासे रे परिमल चीहुं पासे संचीयो रे लोल, ॥३॥ हारे मारे देव चतुर्विध आवे कोडाकोडजो, त्रीगडुरे मणि हेम रजतनुं ते रचे रे लोल, हारे मारे चोसठ सुरपति सेवे होडा होड जो, आगेरे रस लागे इन्द्राणि नचे रे लोल, ॥४॥ हारे मारे मणिमय हेम सिंहासन बेठा आपजो, ढाले रे सुर चामर मणी रत्ने जड़यां रे लोल, हारे मारे सुणतां दुंदुभी नाद हरे सवितापजो, वरसे रे सुर फूल सरस भान अड्यां रे लोल, ॥५॥ हारे मारे ताजे तेजे गाजे घन जेम लुंबजो, राजे रे जिनराज समाजे धर्मने रे लोल, हारे मारे निरखी हरखी, आवे जन मन लुंबजो पोषेरे रस न पडे घोषे भर्ममां रे लोल, ॥६॥ हारे मारे आगमन जाणी जिनना श्रेणिक रायजो, आव्यो रे परवरीयो हय गय रथ पायगेरे लोल, हारे मारे देई प्रदक्षिणा वंदी बेठो ठायजो, सुणवारे जिनवाणी मोटे भायगेरे लोल, ॥७॥ हारे मारे त्रिभुवन नायक लायक तव भगवंतजो, आणी रे जन करुणा धर्म कथा कहेरे लोल, हारे मारे सहज विरोध विसारी जगना नाथजो, सुणवारे जिनवाणी मनमां गह गहेरे लोल, ॥८॥ ... (ढाळ २) वीर जिनवर इम उपदिशे, सांभळो चतुर सुजाणरे, मोहनी निंदमां का पडो, ओळखो धर्मना कामरे, ॥१॥ विरतीए सुमतिधरी आदरो, परिहरो विषय कषायरे, बापडां पंच प्रमादथी, का पडो कुगतिमां धाय रे ॥२॥ करी शको धर्म करणी सदा, तो करो ए उपदेश रे, सर्वकाळे नवि करी शको, तो करो पर्व सुविषेश रे, वि० ॥३॥ जुजुंआ पर्व षटना कह्या, फळ घणा आगमे जोय रे, वचन अनुसारे आराधतां, सर्वदा सिद्धी होय रे, वि० ॥४॥ जीवने आयु परभव तणुं, तिथि दिने बंध होय प्राय रे, ते भणी एह आराधता, प्राणीयो सद्गति जाय रे, वि० ॥५॥ तेहवे
SR No.032195
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDinmanishreeji
PublisherDhanesh Pukhrajji Sakaria
Publication Year2001
Total Pages634
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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