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________________ 441 आगलो, लघुभाई अतिसार राजन; वसुदेवने कीधो पाटवी, पंचशयां शिरदार राजन । मुनि० ६ पग पग पूछे तेहने, सुत्र अर्थ निरधार राजन; पलक एक उंघे नहि, तव चिंते अणगार राजन । मुनि० ७ पाप लाग्युं मुज कीहां थकी, एवडो श्यो कंठशोष राजन; मूढ मूरख संसारमां, काया करे निज पोष राजन। मुनि० ८ बार दिवस मौन रह्यो, प्रगट थयो तव पाप राजन; जेवां कर्म जे कोई करे, ते लहे सघळां आप राजन । मुनि० ६ तुज कुले आवी अवतर्यो, दिपाव्यो तुज वंश राजन; वृद्धभाई मरी उपन्यो, मान सरोवर हंस राजन । मुनि० १० सयल कथा सुणता लयो, जातिस्मरण बाल राजन; धन धन ज्ञानी गुरु मल्या, रोग थया आलमाल राजन। मुनि० ११ विधि साथे पंचमी तप करे, राजादिक परिवार राजन; रोग गया सवि तेहना, जिम जाये तडके ठार राजन | मुनि० १२ स्वयंवर मंडप मांडीयो, परणी एक हजार राजन; हरख्यो वरदत्त इम कहे, जैनधर्म जगसार राजन । मुनि० १३ राज्ये स्थापी निजपुत्रने, साधे शिवपुर साथ राजन; अजितसेन चारित्र लीयो, साचा श्री गुरु हाथ राजन। मुनि० १४ सुख विलसे संसारना, वरतावे नित आण राजन; पुत्र जनम एहवे थयो, ऊग्यो अभिनव भाण राजन। मुनि० १५ (दुहा) गुणमंजरी सुंदरभई, परणी सा जिनचंद, चारित्र पाली निर्मलुं, पामे विजयंत सुरिंद। १। वरदत्त मनमां चिंतवे, आपुं सुतने राज, हवे हुं संयम आदरूं, साधु आतम काज, २ अशुभ ध्यान दूर करी, धरतो जिनवर ध्यान, काळधर्म पामी उपन्यो, पुष्कलावती विजय प्रधान । ३ । (ढाळ ४) सौभाग्य पंचमी आदरो, जिम पामो हो सुखसघलां वडवीर तो; चोथभक्ते शुदि पंचमी, व्रत धरवु हो, भोंये सुq धीर तो। सौभाग्य० १ त्रणकाल देव वांदिये, कीजे दीजे हो, मुरुने बहुमान तो; पडिक्कमणां दोय वारना, जिम वाधे हो उत्तमगुणज्ञान तो। सौभाग्य० २ नयरी पुंडरिगिणी सोहती, विराजे हो अमरसेन भूपाल तो; तस घरणी शीले सती, गुणवंती कुंखे हो अवतरीयो बाल तो। सौभाग्य० ३ सज्जन संतोषी सामटा, नाम स्थापे हो सुरसेन अभिराम तो; चंद्रकला जेम वाधती, तेम साधे हो वाधे निज नाम तो। सौभाग्य० ४ यौवनवय जाणी पिता, सो कन्या परणावी सार तो; राज्य देई निज पुत्रने, अमरसेन पहोंतो हो परलोक मोझार तो।
SR No.032195
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDinmanishreeji
PublisherDhanesh Pukhrajji Sakaria
Publication Year2001
Total Pages634
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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