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________________ 440 खंडमध्ये भरतमां, खेटक नगरे निरखंत रे। सुंदर० ७ जिनदेव वणिक वसे तिहां, सुंदरी नामे नाम रे | सुंदर; पांच बेटा गुण आगला, चारसुता मनोहार रे। सुंदर० ८ एक दिन भणवा मूकीया, होंश धरी मनमांही रे। सुंदर; चपलाई करे चोगुणी, न भणे हरखे उच्छांही रे। सुंदर० ६ शिखामण पंड्यो दीये, आवी रूवे माता पास रे। सुंदर; कोप करी वळतुं कहे, बेठा रहो घर वास रे। सुंदर० १० चूलां मांही नांखीया, पुस्तक पाटी सोय रे। सुंदर; रीसे धमधमती कहे, आखर मरशे सहु कोय रे । सुंदर० ११ कंत कहे नारी प्रत्ये, कोण दीए कन्यादान रे। सुंदर; मूरख गुण ग्रहे नहिं, न लहे आदरमान रे। सुंदर० १२ बिहु जण मांही बोलता, क्रोध वध्यो विकराल रे। सुंदर; जिनदेवे मार्यु मुशलुं, मरण पामी तत्काल रे। सुंदर० १३ तेह मरी गुणमंजरी, अवतारी ताहरे गेह रे । सुंदर; जातिस्मरण उपन्युं, प्रगटी पुन्यनी रेह रे । सुंदर० १४ साचुं साचुं सहु कहे, ज्ञान भणो गुणखाण रे। सुंदर; तपनो जो उद्यम करो, तो लहो केवलज्ञान रे। सुंदर० १५. (दुहा) पांसठ महिना कीजीये, मास मास उपवास; पोथी थापो आगले, स्वस्तीक पुरो खास । १। पांच पांच फल मूकीये, पांच जातिनां धान; पांच वाटी दीवो करे, पांच ढोउं पकवान । २। कुसुम भला आणी करी, धूप पूजा करी सार; नमो नाणस्स गुणणु गणो, उत्तरदिशि दोय हजार । ३ । भक्ति करे स्वामीतणी, शक्ति तणे अनुसार; जिनवर जुगते पुजतां, पामे मोक्ष द्वार । ४। बार उपवास न करी शके, वरसमांही दिन एक; जावज्जीव आराधीए, आणी परम विवेक ।५। (ढाळ ३) मुनिवर दीये धर्मदेशना, सुधीये देई कान राजन; आळस मूकी आदरो अजुवालो निजज्ञान राजन | मुनि० १ राय पूछे हरखे करी, सांभळो गुरु गुणवंत राजन; वरदत्ते कर्मकीश्यां कर्या, कोढे अंग गलंत राजन । मुनि० २ भविक जीव हितकारणे, गुरु कहे मधुरी वाण राजन; पूर्व भवनी वार्ता, सांभळो चतुर सुजाण राजन । मुनि० ३ जंबूद्विप भरतक्षेत्रमां, श्रीपुर नगरविशाल राजन; वसुशेठना सुत बे भलां, वसुसार वसुदेव निहाल, राजन। मुनि० ४ वन रमतां गुरु वांदिया, श्री मुनिसुंदरसूरि राजन; सांभलतां संयम लीये, तप करे आनंदपुर राजन । मुनि० ५ सकलकला गुण
SR No.032195
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDinmanishreeji
PublisherDhanesh Pukhrajji Sakaria
Publication Year2001
Total Pages634
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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