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________________ 391 ॥२॥ साप चंडकोशीयो, जे महारोषीयो, पोषीयो ते सुधा नयन पुरे; एवडा अवगुण शा प्रभु में कर्या ? ताहरा चरणथी राखे दुरे०....वीर० ॥३।। शूलपाणी सुरने प्रतिबोधियो, चंदना चित चिंता निवारी; महेर धरी घेर पहोता प्रभु जेहने, तेह पाम्या भव दुःख पारी०....वीर० ॥४॥ गौतमा दिकने जई प्रभु तारवा, वारवा यज्ञ मिथ्यात्व खोटो; तेह अगीआर परिवार शुं बुझवी, रुझवी रोग अज्ञान मोटो०....वीर० ॥५॥ हवे प्रभु मुज भणी तुं त्रिभुवन धणी, दास अरदास सुणी सामु जोवे; आप पद आपतां, आपदा कापतां, ताहरे अंश ओर्छ न होवे;०....वीर० ॥६॥ गुरु गुणे राजता अधिक दिवाजता, छाजता जेह कलिकाल मांहे; श्री खिमाविजय पय सेव नित्यमेव लही, पामीये शमरस सुजस त्यांहि०....वीर० ॥७॥ (6) श्री महावीर जिन स्तवन प्रभु बिन वाणी कौन सुनावे ?....प्रभु० जब ये वीर गये शिवमंदिर, अब मेरा संशय कौण मिटावे०....प्रभु. ॥१॥ कहे गौतम गणधर तमहर ए, जिनवर दिनकर जावे रे जावे०....प्रभु०. ॥२।। कुमति उलूक कुतीर्थ किनारे, तिगतिताटतस थावे रे थावे०....प्रभु०. ॥३॥ तुम बिण चउविह संघ कमल वन, विकसित कोण करावे रे करावे०....प्रभु०. ॥४॥ मोकु साथ कयुं न चले ले, चित्त अपराध धरावे रे धरावे०....प्रभु०. ॥५॥ युं परभाव विचारी अपनो, भाव समभावमां लावे रे लावे०....प्रभु०. ॥६॥ वीर वीर लवतां वीर अक्षर अंतर तिमिर हरावे रे हटावे०....प्रभु० ॥७|| इन्द्रभूति अनुभव अनुभूति, ज्ञान विमल गुण पावे रे पावे०....प्रभु०. ॥८॥ सकल सुरासूर हरखित होवत जुहार करणकुं आवे रे आवे०....प्रभु०. ॥६॥ (7) श्री महावीर जिन स्तवन चोवीशमो श्री महावीर, साहिब साचो रे; रत्नत्रयी पात्र, हीरो जाचो रे. ॥१॥ आठ करमनो भार. कीधो दुरे रे; शिववधू सुंदर नार, थई हजूरे रे. ॥२॥ तुमे सार्या आतम काज, दुःख निवार्यां रे; पहोता अविचल ठाम, जिहां नहि फेरारे. ॥३॥ जिहां नहि जन्म मरण, थया अविनाशी रे; आतम
SR No.032195
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDinmanishreeji
PublisherDhanesh Pukhrajji Sakaria
Publication Year2001
Total Pages634
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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