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________________ 390 ही दर्श सुहावे छे०... त्रिशला० ||१|| ओ मेरे व्हाला त्रिभुवन पाला, ठुमक ठुमक चल आवे छे..... त्रिशला ० ||२|| पारणे पोढ्यो त्रिभुवन नायक, फिर फिरके कंठ लगावे छे०.... त्रिशला० ||४|| आवो सखी मुज नंदन निरखो, जगत उद्योत करावे छे. आतम अनुभव रसके दाता, चरण शरण तुम भावे छे०.... त्रिशला० ॥५॥ ( 4 ) श्री महावीर जिन स्तवन मारा प्राण तणा || १ || माता त्रिशला नंद कुमार, जगतनो दीवो रे, आधार, वीर घणुं जीवो रे, आमलकी क्रीडाए रमतां, हार्यो सुरप्रभु पामी रे, सुणजो ते स्वामि अंतरजामी, वात कहुं शीर नामी रे, वीर घणुं जीव २० ॥२॥ सुधर्मा देवलोके रहेतां, अमे मिथ्यात्व भराणां रे; नागदेवनी पूजा करतां, शिर न धरी प्रभु आणा रे. माता० ||३|| एक दिन इन्द्रसभामां बेठा, सोहमपति एम बोले रे; धिरज बल त्रिभुवननुं आवे, त्रिशला बालक तोले २०.... माता० ||४|| साचुं साचुं सहु सुर बोल्या, पण में वात न मानी रे; फणीधर ने लघु बालक रुपे, रमत रमीयो छानी २०.... माता० ॥ ५॥ वर्धमान तुम धैर्य मोटुं; बलमांपण नहि काचुं रे०.... गिरुआना गुण गिरुआ गावे; हवे में जाण्यं साचुं रे..... माता० || ६ || एक ज मृष्टि प्रहारे महारुं मिथ्यात्व भाग्युं जाय रे; केवल प्रगट्ये मोहरायने, रहेवानुं नहि थाय रे.....माता० ||७|| आज थकीतुं साहिब मारो, हुं हुं सेवक तारो रे; क्षण एक स्वामी गुणन विसारुं, प्राण थकी तुं प्यारो रे..... माता० ||८|| मोह हरावे समकित पावे, ते सुर स्वर्ग सिधावे रे महावीर प्रभु नाम धरावे, इन्द्रसभा गुण गावे. २०....माता० ||६|| प्रभु मलपंता निज घेर आवे, सरिखा मित्रे सोहावे रे श्री शुभवीरनुं मुखडुं जोतां, माताजी सुख पावे रे०.... माता० ||१०|| (5) श्री महावीर जिन स्तवन वीर वड धीर महावीर मोटो प्रभु, पेखतां पाप संताप नासे; जेहना नाम गुण धाम बहु मानथी; अविचल लील हैये उल्लासे ० .... वीर० ||१|| कर्म अरि जीपतो दीपतो वीर तुं, धीर परिषह सहे मेरुं तोले; सुर बल परखीयो, रमत करी निरखीयो, हरखीयों नाम महावीर बोले ०.... वीर०
SR No.032195
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDinmanishreeji
PublisherDhanesh Pukhrajji Sakaria
Publication Year2001
Total Pages634
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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