SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 414
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 365 साथे, तारी मूर्ति उपर जाउं वारी हो, प्रभुजी० ॥८॥ उदयरत्ननो सेवक पभणे, मोक्षमांगु गुणखाणी, भवोभव तुम चरणोनी सेवा, ओह उपर हु रागी हो..प्रभुजी० ॥६॥ (15) पार्श्वनाथ जिन स्तवन (राग : गोडी) जय जय जय जय पास जिणंद. अंतरिक्ष प्रभु त्रिभुवन! तारक, भविक कमल उल्लास दिणंद०...जय० ॥१॥ तेरे चरन शरन में किनो, तुं बिनु कुन तोरे भव-फंद, परम पुरुष परमारथदर्शी, तुं दिये भविककुं परमानंद०... . जय० ॥२॥ तुं नायक तुं शिवसुख-दायक, तुं हितचिंतक तुं सुखकंद; तुं जनरंजन तुं भवभंजन, तुं केवल कमला गोविंद०...जय० ॥३॥ कोडी देव मिलके कर न शके, ओक अंगुठ रुप प्रतिछंद; जैसो अद्भुत रुप तिहारो, वरसत मानुं अमृतके बुंद०...जय० ॥४॥ मेरे मन मधुकरके मोहन, तुम हो विमल सदल अरविंद; नयन चकोर विलास करतुं ही, देखत तुम मुख पूनमचंद...जय० ॥५॥ दूर जावे प्रभु! तुम दरिशनसे, दुःख दोहग दारिद्र अघदंद; वाचक जस कहे सहस फलते तुमहो, जे बोलेतुमगुनकेवृंद०...जय० ॥६॥ (16) पार्श्वनाथ जिन स्तवन मोहनगारो मारो, दुःखनो हरनारो मारो, प्राण पियारो मारो, साहिबो; प्रभु माहरा, दिलभर दरिसण आप हो, प्रभु माहरा, मुगति तणाफल आप हो. ॥१॥ कर जोडी ओळग करु, प्रभुजी माहरा, रात दिवस ओक ध्यान हो; जाणो रखे देवू पडे, प्रभुजी माहरा, वात सुणो नहि कान हो...मोहन०. ॥२॥ करतां नित्य भोळामणी, प्र० इम केता दिन जाशे हो; भीना जे ओलग रसे प्र०, ते केम आकुल थाशे हो...मोहन०. ॥३॥ देव जगमा छे अनेरडा, प्र० ते मुज नवि सुहाय हो; फळ थाये जे तुम थकी, प्र०, ते किम अन्यथी थाय हो...मोहन०. ॥४॥ ओछा कदीय न सेविये, प्र०, जे न हरे पर पीड हो; मोटी लहरी सायर तणी, प्र०, भांगे ते भवनी भीड हो...मोहन०. ॥५॥ देतां भाडु भक्तिर्नु, प्र०, तिहां नही केहनो पाड हो; लेशुं फळ मन रीझवी, प्र०, तिहां किश्युं कहेशे चाड हो...मोहन०. ॥६।। मुख देखी टीलुं करे, प्र०
SR No.032195
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDinmanishreeji
PublisherDhanesh Pukhrajji Sakaria
Publication Year2001
Total Pages634
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy