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________________ 364 (13) पार्श्वनाथ जिन स्तवन तुं प्रभु मारो हुं प्रभु तारो, क्षण अक मुजने नारे विसारो, महेर करी मुज विनंति स्वीकारो, स्वामी सेवक सामु निहाळो,...तुं प्रभु० ॥१॥ लाख चोराशी भटकी प्रभुजी, आव्यो तुम शरणे हो जिनजी, दुर्गति कापो, शिवसुख आपो, भक्त सेवकने निजपद स्थापो, तुं प्रभु० ॥२॥ अक्षय खजानो प्रभु ताहरो भर्यो छे, आपो कृपालु में हाथ धर्यो छे, वामानंदन जगवंदन प्यारो, देव अनेरा मांहे तुं न्यारो, तुं प्रभु० ॥३॥ पल पल समरुं नाथ शंखेश्वर, समरथ तारण तुं ही जिनेश्वर, प्राणथकी मुज अधिको व्हालो, दयाकरी मुज स्नेहे निहाळो, तुं प्रभु० ॥४॥ भक्तवत्सल तारु बिरुद जाणी, केड न छोडुं ओम लेजो जाणी, चरणोनी सेवा हुं नित नित चाहुं, घडीओ घडीओ मनमां उमाहु, तुं प्रभु० ॥५॥ ज्ञानविमल तुज भक्ति प्रभावे भवोभवना संताप समावे, अमीय भरेली तारी मूर्ति निहाळी, पाप अंतरनां देजो पखाळी, तुं प्रभु० ॥६॥ (14) पार्श्वनाथ जिन स्तवन (राग : तात नुं निर्वाण सांभळी रे) पार्थप्रभुना चरण नमीने, अरज करुं गुणखाणी, मिथ्यादेवनी मूर्ति सेवी साहिब तुमे छो ज्ञानी हो प्रभुजी अहवो हु छु. अज्ञानी० ॥१॥ गीत अज्ञान नाटकमां हुं भमियो, कुगुरु तणे उपदेशे, रंग भर रातो ने मदभर मातो, भमियो देश विदेशे हो..प्रभुजी० ॥२॥ जिन प्रसादमें जयणा न कीधी, जीवदयाथी हुं नाठो, धर्म न जाण्यो में जिनजी तुमारो, हृदय को घणो काठो हो, प्रभुजी० ॥३॥ परनिंदामा रहुं छु पुरो, पापतणो हु वासी, कहो साहेब शी गती अमारी, धर्म स्थानक गया नाशी हो..प्रभुजी० ॥४॥ त्रण भुवनमा भमता भमतां, कोई भाळ बतावी, महा दातार जिनेश्वर मोटा, महेर विपुलना वासी हो..प्रभुजी० ॥५॥ कोई ओक पूरव पून्य संयोगे, आरज कुल अवतरियो, पुन्यसंयोगे जिनवर मळिया, भवना फेरा टळिया हो..प्रभुजी० ॥६॥ ते माटे हुं अरज करीने, आव्यो छु दुःखवासी, मिथ्यादेवनी मूर्ति मूकी, चाकरी करुं तुम खासी. हो, प्रभुजी० ॥७॥ वामादेवीना नंदन सुणजो, आतम अरज अमारी, मनमोहयुं जिनजी तुम
SR No.032195
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDinmanishreeji
PublisherDhanesh Pukhrajji Sakaria
Publication Year2001
Total Pages634
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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