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________________ 330 छांटे, शीतळ पवन सुहाणी रे शीतल पवन सुहाणी रे, पामी चेतना कहे गुण खाणी रे, अणघटतुं शुं कीधुं ओम नाणी रे, अण परणी रे, उभी मुज छिटकाई, दया दिलमां ते लेश न लाई सखी० ||४|| मुज जोबन रे बाले वेष भरपुर, जाणे नदीओनुं चडतुं पुर रे, किम रहीशुं रे प्रीतम तुम विण दूर, रथवाळोने नेम ससनुर रे, मुज मंदिर पावन थाये रे, जादव कुल सहु हरखाओ रे, हठ नवी करीओ रे, मूकी दीओ छोकरवाद, घेर आवोने गरीब निवाज रे... सखी० ||५|| मुज अवगुण रे कोईक नाथ बतावो, विण अपराधे मुकी शुं जाओ रे, त्रण. जगतमां परम दयालु कहावो, रोती मूकी राजुल केम जाओ रे, करुणानिधि नाम धरावो मुज उपर दया केम ना लावो रे नवी जाणती रे निस्नेही अवो नेम, नवि परणविती तो आव्या ता केमरे. सखी० ||६|| ओम राजुल रे वील वील करती तेवार, नेम सन्मुख जुअ न लगार... निरागी रे प्रभु जाणी ते वार, लीओ संजम हरख अपार, तप करीलही केवल नाणी रे पामी, राजुल पद निरवाणी रे, ओम जाणी ने रे, दान दया चित्त धरीओ, सहेजे अमृत विमल पदवरिओ. सखी० ||७|| (5) राजुलनो विंझणो ( राग : तारी लियोने वितरागी) आव्या उनाळाना दहाडा राजुल बेनी विंझणीयो शुं न लावी विंझणियो शुं न लावी, राजुल बेनी विंझणीयो शुं न लावी के, मारा नेमने ढोळवा थाय के, प्रभुजीना चरणे शिश नमावी चरणे शीष नमावी, राजुल बेनी वींझणीयो शुं न लावी. ||१|| राजुल कहे सुणो सहियर मोरी, विंझणीयो शा माटे लावु ? स्वामी मुकी गया गिरनारे, संसार छोडी मुनिवर थावुं. ||२|| चंद्रा कहे सुणो राजुल बाळा, सरळ स्वभावी न होय काळा, कारणओ स्वामीने तजीओ के, बीजो वर, मनमां भजीओ के. ॥३॥ राजुल कहे बोलो बोल म झुठा, श्याम वस्तुमां गुण छे मोटां, अ तो त्रण भुवननो स्वामी के, हुंतो, पूरव पुण्ये पामी के. || ४ || जिनजी ओ जीवदया मन आणी, रथडो फेरी चाल्या पाप जाणी, पशुडां उगारी दान दीधां कुंवारे, मन वांछित फळ लीधां के. ॥५॥ मात कहे सुण पुत्र सुजाण के तुं तो अनंत गुण भगवान; मारी आशा पुरो अकवार के, कन्या परणीने वान वधार ||६|| पुत्र कहे सुणो माता हमारी, परणुं नहि हुं मानव नारी; संयम नारी
SR No.032195
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDinmanishreeji
PublisherDhanesh Pukhrajji Sakaria
Publication Year2001
Total Pages634
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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