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________________ 320 अवदात. अतो तीर्थंकर पद तात. ओतो चउपुरुषार्थनी मात..ओना सघळा अर्थ छे जात रे..मुणिंदा० ॥४॥ ओ तो त्रिहुं जगमां उद्योत, जिम रवि शशी दीपक ज्योत बीजा वादिश्रुत खद्योत, अतो तारे रे. अतो तारे जिम जल पोत रे..मुणिंदा० ॥५॥ अनो गणधर करे शणगार, अने गावे नरने नार, ओतो धूरथी सदा ब्रह्मचार, अंतो त्रिपदी रे मेतो त्रिपदीनो विस्तार रे. मुणिंदा० ॥६॥ अथी जातिना वैर समाय, बेसे वाघण भेळी गाय, आवे सुरदेवी समुदाय, अने गावे रे, अने गावे पाप पलाय रे मुणिंदा० ॥७॥ अने वंछे नरनेनार. जेथी नाशे कामविकार, अतो घर घर मंगल चार. अतो मुनि जिनरे ओतो मुनिजिन प्राण आधार रे मुणिंदा तोरी देशना सुखखाणी० ॥८॥ (3) श्री मुनिसुव्रत जिन स्तवन (राग : तुम्ह दरिशन भले पायो) मुनिसुव्रत मन मोयुं मारुं, मे शरण हवे छे तमारुं, प्रातः समये ज्यारे हुं जागुं, स्मरण करुं छु तमाएं हो जिनजी, तुज मुरति मनहरणी, भवसायर जलतरणी हो जिनजी.....(१) आप भरोसो आ जगमां छे, तारो तो घणुं सारु, जन्म जरा मरणे करी थाक्यो, आशरो लीधो में तमारो..... (२) चुं चुं चुं चुं चिडिया बोले, भजन करे छे तमारु, मूर्ख मनुष्य प्रमादे पड्यो रहे, नाम जपे नहि तारुं होजिनजी० (३) भोर थतां बहु सोर सुगुं हुँ, कोई हसे कोई रूवे न्यारं, सुखीयो सूवे दुःखीयो रुवे, अकल गतिए विचारुं हो जिनजी० (४) खेल खलकनो बधो नाटकनो, कुटुंब कबिलो हुं धारुं, ज्यां सुधी स्वार्थ, त्यां सुधी सर्वे, अंत समय सहुं न्यारुं० (५) माया जाळ तणी जोई जाळी, जगत लागे छे खारुं, 'उदयरत्न' इम जाणी प्रभु ताहरु, शरण ग्रयुं छे में सारुं, हो जिन जी, (६) (4) श्री मुनिसुव्रत जिन स्तवन (राग : जय पालिताणा जय....) ___ मुनिसुव्रत जिन वंदता, अति उलसीत तन-मन थाय, वदन अनुपम निरखता मारां, भवोभवना दुःख जाय, जगतगुरु जागतो सुखकंद, सुखकंद अमंद आनंद, परमगुरु, दीपतो सुखकंद (१) निशदिन सुतां जागतां रे, हैयाथी न रहे दूर, जब उपकार संभारीये, तब उपजे आनंद पुर..... (२) प्रभु उपकार गुणे भर्या मन, अवगुण एक न समाय, प्रभु गुणगण अनुबंधी
SR No.032195
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDinmanishreeji
PublisherDhanesh Pukhrajji Sakaria
Publication Year2001
Total Pages634
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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