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________________ 298 तें तो तोड्यो तेहनो दोरो; मारो पासो न मेले राग, तमे प्रभुजी थया वितराग. ॥सु०॥ ५ मने मायाले मूकयो पाशी, तुं तो निरबंधन अविनासी; हुं तो समकितथी अधूरो, तुं तो सकळ पदारथे पूरो. ॥सु०॥ ६ मारे छो प्रभु तुही ओक, त्हारे मुज सरीखा अनेक; हुं तो मनथी न मूंकु मान, तुं तो मानरहित भगवान ॥सु०॥ ७ मारुं कीधुं कशुं नवि थाय, तुं तो रंकने करे छे राय; ओक करो ने मुज महेरबानी, मारो मुजरो लेजो मानी. ।।सु०।। ८ ओकवार जो नजरे निरखो, तो करो मुजने तुज सरीखो; जो सेवक तुम सरीखो थाशे, तो गुण तमारा गाशे. ।।सु०॥ ६ भवो भव तुम चरणोनी सेवा, हुं तो मागु देवाधिदेवा; सामुं जुओने सेवक जाणी, ओवी उदयरतननी वाणी ॥सु०॥ १० (9) श्री शान्ति जिन स्तवन (राग-आवो आवो हो वीर....) शांति जिनेश्वर साहिब मारो, मीलीयो जगनो तारु, भीम भवोदधि तरवा कारण, जिनपद प्रवहण वारुं, साहिब नीरखो आज सेवक स्नेह धरीने, मानो ते मानो आज, मनमां महेर करीने (१) अचीरा कुखे जब प्रभु आया, तब सवि दुरित गमाणा, घर घर मंगळ माळा प्रगटी, दुःख दोहग कुमलाणा.... साहिब० (२) मृग लंछन मनहरणी मूर्ति, सुरति सुंदर दिशे, चंद्र चकोर तणी परे नीरखी, तन मन हैडुं हींसे,....साहिब० (३) जेम पारेवां पंखी उपरे, कीधी करुणा स्वामी, तिमजो सेवकने संभाळो तो, साचो अंतरजामी.... साहिब० (४) विश्वसेन नृप नयनानंदन, चंदन शितळ वाणी, शक्ति तुमारी जगजन तारक, जाणी विबुध वखाणी.... साहिब० (५) बोधिबिज तुम पदकज सेवा, आपो एहिज मांगु, 'ज्ञान-विमल' सूरि कहे एम अहोनिश, लळीलळी तुम पाय लागुं.... साहिब० (६) (10) श्री शान्ति जिन स्तवन (राग - हुं तारी बोलावं जे) श्री शांति जिनेश्वर दीठा, मारा मनमा लाग्यो मीठा, आज मुखड़े तमारुं, जोता मारा नयन थयां पनोता...(१) जे नजर मांडि एने जोशे, ते तो भवनी भावठ खोशे रे, एन रूप जोई जे जाणे रे, तेहने सुरनर सह वखाणे रे..(२) ए तो साहिबा छे सयाणो रे, मने लागे एहशुं तानो रे, ए
SR No.032195
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDinmanishreeji
PublisherDhanesh Pukhrajji Sakaria
Publication Year2001
Total Pages634
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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