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________________ 289 पिस्तालीश कायहो, रत्नपुरे दिक्षा लीये, सैय० दशलाख पूरव आयहो।।४।। त्रण लाख पल्योपम आंतरे सैय० धर्म प्रवर्तनहारहो, गच्छ तेंतालीश स्थापीया, सैय० गणधर पण मनोहार हो सैय०॥५।। हरीवर्ण वृक्षनी हेटले, सैय० छठतपे चौविहारहो, घातीकर्म खपावीने, सैय० केवलज्ञान उदार हो ॥६॥ अडशत मुनिशुं शिववर्या, सैय० धर्मनाथ महाराज हो, विजयमुक्तिवर पामीने, सैय०, कमलना सिध्याकाजहो।।७।। (2) धर्मनाथ जिन स्तवन (राग : मारी आ जीवन नैया) धर्मजिनेश्वर सुण परमेश्वर, तुम गुण केता कहायजी, तुज वचने तुज रूप जणाये, अवर न कोई उपायजी (१) ताहरे मित्र अने शत्रु सम, अरिहंत तुं ही गवायजी, रूप स्वरूप अनुपम तुं जिन, तो ही अरूपी कहायजी, (२) लोभ नहि तुजमाही तो पण, सघळा गुण ते लीधजी, तुंही निरागी पण ते रागी, भक्त तणा मन कीधजी (३) नहि माया तुजमां जिनराया, पण तुज वश जग थायजी, तुं ही सकल अकल कले कुण, ज्ञान विना जिनरायजी (४) सुगुण सनेहा महेर करो मुज, सुप्रसन्न होय जिणंदजी, पभणे केसर धर्मजिनेश्वर, तुज नामे आनंदजी (५) (3) धर्मनाथ जिन स्तवन (राग : ज्योत से ज्योत जगाते चलो) श्री धर्म जिनेश्वर धर्मधुरंधर, पुरव पुन्ये मीलीयो मनमरूथलमें सुरतरु फळीयो, आज थकी दिन वळीयो । (१) प्रभुजी महेर करी महाराज, काज हमारां सारो, साहिब गुणनिधि गरीब निवाज (२) भवजल पार उतारो । (२) बहु गुणवंता जेह ते तार्या, तेमां नहि पाड तुमारो मुज सरीखो जो पथ्थर तारो (२) तो तुमची बलिहारी० (३) हुं निर्गुणी पण ताहरी संगे, गुणलहु तेह घटमान निंबादिकपणे चंदन संगे (२) चंदन सम लहे तान० (४) निर्गुणी जाणी छेह न देशो, जो-जो आप विचारी हा-विचारी चंद्र कलंकित पण नीजशिरथी (२) न तजे गंगाधारी० (५) सुव्रतानंदन सुव्रतदायक, नायक जिन पदवीनो, हा पदवीनो, पायक जास सुरासुर किन्नर (२) घायक मोहरीपुनो,। (६) तारक तुमसम अवर न दीठो, लायक नाथ हमेरो हा हमेरो श्री गुरुक्षमाविजय पाय सेवी (२) कहे जिन भवजल तारो० (७)
SR No.032195
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDinmanishreeji
PublisherDhanesh Pukhrajji Sakaria
Publication Year2001
Total Pages634
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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