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________________ 282 (3) श्री विमलनाथ जिन स्तवन (राग : बहे अखियोसे धार) विमल जिनेश्वर वालहो, आतमथी अति प्यारो, मुज मन लाग्यो तेह शुं, पण तें थई रह्यो न्यारो, साहिब० (१) दरिसण तेहगें देखवा, रातदिवस हुँ रसियो, पण ते निस्नेही थयो, शिवपुरमां जई वसीयो रे विमल० (२) चंद्र चकोर तणी परे, चुप धरीने हुं चाहुं, मळवा मन भेलु भळी, आठे पहोर उमाह रे, विमल० (३) एक घडी अडधी घडी, जो एकांत लीजे रे, अंतरजामीनी आगळे, तो मन वात कहीजे रे, विमल० (४) सात राजने अंतरे, जे बेठा जई दूर रे, ते साथे शी परे करी, मील्ये प्रेम प्रहर रे विमल० (५) नेण नेण मिल्या पखे, किम भांजे मन भ्रांतो अलजो न टळे अंगनो, भेट्या विण भगवंतो रे विमल० (६) हंस कहे हवे आजथी, भक्ति करुं इण भ्रांति रे आवीने मनमां वसो, मुज साहिब मन खांति रे विमल० (७). (4) श्री विमलनाथ जिन स्तवन (राग : खारी खारी जगनी सहु) विमल जिनेश्वर सुण मुज विनती, तुं निसनेही आप, हुं ससनेही छु प्रभु उपरे, इम किम थाशे मिलाप० (१) निसनेही जिनवरा आवे नहीं, कीजे कोडी उपाय, ताली एकण हाथे बजावता, (२) उद्यम निष्फल थाय विमल० (२) रात-दिवस रहीये करजोडीने, खीजमत करीए खास, तो पण जे नजरे आणे नहीं, (२) ते श्युं दीजे साबास, विमल० (३) भक्तवत्सल जिनभक्ति पसायथी, चढ्यो काज प्रमाण, इम थिर मन करीने जे रहे, (२) लहे फल ते निर्वाण, विमल० (४) जो पोते मन थीर करी आदरी, तुं प्रभु दीनदयाळ, आपवजाइ निज मन आणी (२) दान विजय प्रतिपाल विमल० (५) (5) श्री विमलनाथ जिन स्तवन (राग : सकल समता सुरल) दुःख दोहग दूरे टल्या रे, सुखसंपदशं भेट; धींग धणी माथे कीयो रे, कुण गंजे नर खेट; विमळजिन दीठा लोयण आज; मारां सिध्यां वांछित काज ।।१॥ चरण कमळ कमळा वसे रे, निर्मळ थिरपद देख; समळ अस्थिर पद परिहरी रे, पंकज पामर पेख ।वि०॥ २ मुज मन तुज पदपंकजे रे, लीनो गुण मकरंद; रंक गणे मंदर धरा रे, इन्द चंद नागिंद॥वि०॥ ३
SR No.032195
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDinmanishreeji
PublisherDhanesh Pukhrajji Sakaria
Publication Year2001
Total Pages634
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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