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________________ 281 दीठो देव दयाल ते, नयना हेजे हसंत रे, जिनपति० १ हरिहर जेणे वश कर्या, इन्द्रादिक जस दास रे, जिनपति० ते मन्मथनो मद हो, तें प्रभुं कीधो उदास रे, जिनपति० २ मयण मयण परे गाळीयो, ध्यान अनल बळ देख रे, जिनपति० कामिनी कोमळ वयणशुं, चूक्यो नहि राई रेख रे, जिनपति० ३ नाण दरिशण चरण तणो, जे भंडार जयवंत रे, जिनपति० आप तरी पर तारवा, तुं अविचल बलवंत रे, जिनपति० ४ मन मेरो तुम पाखली, रसीयो फरे दिन रात रे, जिनपति० सरस मेघने वरसवे रे, नाचे मोर विख्यात रे, जिनपति० ५ (1) श्री विमलनाथ जिन स्तवन (राग : कोण भरे? कोण भरे?) ___ मनवसी मनवसी मनवसी रे प्रभुजी नी मूर्ति मारे मन वसी रे, जिम हंसामन बहती गंगा, जिम चतुर मने चतुरानो संग, जिम बाळकने माता उछरंग, तिम मुजने प्रभु साथे संग० मन..१ मुख सोहे पुनम केरो चंद, नयन कमल दल मोहे छंद. अधर जिस्या परवाळा लाल, अधर शसीसम दीसे भाल; मन० २ बाहडी जीसे बाल प्रुणाल, प्रभुजी मेरा प्रभुजी कृपाल, जपता को नही प्रभुनी जोड, पुरे त्रिभुवन केरा क्रोड मन० ३ सागरथी अधिको गंभीर, सेव्यो आपे भवनो तीर, सेवे सुरनर क्रोडाक्रोड कर्मतणा मद नाखे मोड मन० ४ भेट्यो भावे ऋषभ जिणंद, मुज मन अधिको परमानंद, विमल विजय वाचकनो शिष्य, राम कहे मुज पुरो जगीश, मन० ५ (2) श्री विमलनाथ जिन स्तवन ॥१॥ प्रभुजी मुज अवगुण मत देखो, राग दशाथी तुं रहे न्यारो; हुं मन रागे वालु, द्वेष रहित तुं समता भीनो, द्वेष मारग हुं चालुं प्र० ॥२।। मोह लेश फरस्यो नहि तुजने, मोह लगन मुज प्यारी, तुं अकलंकित कलंकित हुं तो, अ पण रहेणी न्यारी प्र० ॥३॥ तुं ही निराशी भावपद साथे, हुं आशा संगे विलुद्धो! तुं निश्चल हुं चल तो सुद्धो, हुं आचरणे उंधों प्र० ॥४॥ तुज स्वभावथी अवला मारा, चरित्र सकल जगे जाण्या! अहवा अवगुण मुज अति भारी, न घटे तुज मुख आण्यां प्र० ॥५॥ प्रेम नवल जो होय सवाई, विमलनाथ मुख आगे ! कांति कहे भव रान, उतरतां, तो वेला नवि लागे प्र० ॥६॥
SR No.032195
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDinmanishreeji
PublisherDhanesh Pukhrajji Sakaria
Publication Year2001
Total Pages634
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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